कांग्रेस के निठल्लेपन का प्रमाण है राफेल का सच

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Place: Bhopal                                                👤By: Admin                                                                Views: 31090

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को राफेल सौदा पर बहस की चुनौती दी है। हाल में संपन्न हुए संसद सत्र में कांग्रेस के नेतृत्व में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास का प्रस्ताव लाया गया जिसमें भी राफेल सौदा का मुद्दा उछला। नरेन्द्र मोदी सरकार का दावा है कि राफेल युद्धक विमान का सौदा यूपीए सरकार की तुलना में नौ प्रतिशत कम कीमत पर हुआ, लेकिन मजे की बात यह है कि यूपीए सरकार ने भी कभी राफेल का दाम उजागर नहीं किया था। ऐसे में लगता है कि वास्तविकता जो भी लेकिन यह समूचा मुद्दा बोफोर्स बनाम राफेल के रूपांतरित किया जा रहा है। एक धारणा प्रचलित करने का प्रयास है कि दूध का धुला कोई नहीं है। मगर इसमें एक भिन्नता है। बोफोर्स तोप सौदा में आरोपित दलाली का ऐलान पहले स्वीडर रेडियो ने किया। फिर जांचे शुरू हुई। दलाली लेने वाले और देने वाले चिन्हित किए गए। बोफोर्स का प्रेत पीछा करता रहा। स्व. राजीव गांधी को सरकार खोना पड़ी। दलाली लेने वाले शख्स ओतावियो क्वात्रोची को विदेश निकल जाने का मौदा दे दिया गया और बाद में उसका स्वर्गवास हो गया, लेकिन राफेल सौदा में सिर्फ पतंगबाजी हो रही है। आरोप हवा में तैर रहे है और इसका आने वाली सत्रहवी लोकसभा चुनव में भी प्रति ध्वनि सुनाई देगी इसमें संदेह नहीं है।



राफेल विमान खरीदने की आवश्यकता वायु सेना बहुत पहले से रेखांकित करती आयी है। डाॅ. मनमोहन सिंह सरकार ने राफेल सोदा की चर्चा की लेकिन 2004 से 2014 तक इस पर सरकार न तो किसी नतीजे पर पहंुची और न सौदा किया जा सका। इस सरकार पर सबसे बड़ा आरोप तो यही था कि सरकार अनिर्णय की सरकार है। 2015 आते आते वायुसेना से आपातकालीन स्थिति का अलार्म सरकार को दे दिया। मोदी सरकार ने वायु सेना की सहमति से 36 राफेल विमान सौदा करने का सौदा किया जबकि पूर्ववर्ती सरकार ने 2012 में 126 राफेल विमान खरीदना तय किया था। लेकिन अनिर्णय की स्थिति बरकरार रही। सवाल उठता है कि जब डाॅ. मनमोहन सिंह सरकार ने सौदा ही नहीं किया तो आज राहुल गांधी जिनके हाथ में सरकार का रिमोर्ट कंट्रोल था आज मंहगे और सस्ते की बात किस आधार पर कर रहे है।



जहां तक 2015 में मोदी सरकार की पहल आरंभ होने की बात है वायुसेना की आवश्यकता के आधार पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रंाकोईस होलान्डे से राफेल की चर्चा की। दो सरकारों के बीच पहल आरंभ हुई। दोनों सरकारों ने समझौता करने का फैसला किया। सीमा के हालात देखते हुए सेना अध्यक्ष को कहना पड़ा था कि भारतीय फौज दोनो ओर से होने वाले आक्रमण का सामना करने में तैयार है। केन्द्र सरकार के लिए यह एक स्पष्ट संकेत था और राफेल विमान सही आक्रामक प्रणालियों से लेस की तैयारी में मोदी सरकार को जुट जाना पड़ा। अस्त्र शस्त्र प्रणालियों से सज्जित राफेल की खरीद का करीब 75 हजार करोड़ रूपए की सौदा होना बताया गया। यहां आरोप अपनी जगह हो सकते है लेकिन रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो राफेल में लगायी गयी प्रणालियों के बाद भी प्रति राफेल विमान का मूल्य 59 करोड़ रूपए कम बैठता है। राहुल गांधी का आरोप गलत साबित करने के लिए यह विशेषज्ञों द्वारा दिया गया तर्क और तथ्य है। यदि इन विमानों में किए जा रहे परिवर्तन और संधारण का व्यय कम कर दिया जाता है तो विमान की कीमत 670 करोड़ रूपए प्रति विमान बैठती है। अब जहां तक इन परिवर्तनों को उजागर करने का सवाल है जहां कठिन तकनीकी है। यदि विमान में फिट की गयी प्रणालियों का मूल्य बताया जाता है तो विमान की मारक क्षमता का राज ही उजागर हो जाता है जो राष्ट्रहित और व्यावसायिक कंपनी के हित में नहीं है। व्यावसायिक और सुरक्षात्मक संवेदनशीलता आड़े आती है।



राफेल सौदा में एक आरोप राहुल गांधी सूट बूट की सरकार साबित करने के लिए यह लगा रहे है कि एचएएल से लेकर सौदा एक निजी कंपनी से क्यों हो गया। आरोप है कि 45 हजार करोड़ रूपए का लाभ निजी कंपनी को पहंुचाया जा रहा है। निशाने पर रिलायंस कंपनी और अनिल अंबानी आ जाते है। यहां वास्तविकता कुछ और है। फ्रांसी दसाल्ट ऐविएशन की सांझेदारी 72 कंपनियों से ही जिनमें रिलायंस भी एक है। जहां तक भारत में रक्षा सौंदो की बात है यहां आरोप प्रत्यारोप का चलन इस कदम हावी रहा है कि फौज के आधुनिकीकरण की दर्जनों परियोजनाएं ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है। हमारी फौज पराक्रमी और अजेय है। 1965 के युद्ध में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान की फौज के पेटन टेंकों को विस्फोट कर उड़ा दिया था। यह युद्ध कौशल और शौर्य की बात है। लेकिन हमें जवानों के हाथ में असला तो देना होगा। यह एक विचारणीय प्रश्न है।



चुनाव की आहट और सियासी पेंतराबाजी को कुछ समय भूल जाना हमारी दूरदर्शिता होगी। मेक इन इंडिया के तहत देश का पहला फाइटर विमान 2026 तक तैयार होगा। इसके 4 वर्ष पहले राफेल विमान की खेप आ चुकी होगी। भारतीय वायुसेना का शक्ति बल 2005 में 29.5 स्क्वेडन था जो 2012 में 37, 2018 में 28.32 स्क्वेडन रह गया। अनुमान लगाया जाता है कि 2022 में यह 30 स्क्वेडन होगा। 2032 में 24 पर सिमट जायेगा। रक्षा मंत्री सीतारमण का दावा है कि 2020 में देश में 32 स्क्वेडन होंगे। जबकि 2014 में एनडीए सरकार विरासत में 24 स्क्वेडन मिले थे। वायु सेना अध्यक्ष धनौवा का दावा है कि 2032 तक देश में स्क्वेडन की संख्या 34 हो जायेगी। कुल मिलाकर रक्षा परिदृश्य राजनेताओं की दूरदर्शिता, दृढता में कमी परिलक्षित करता है। ऐसे में जब हमारे सेना अध्यक्ष कहते है कि हम दोनों मोर्चा पर तैयार है कुछ विसंगति देखी जाती है। आज चीन के पास 65 स्क्वेडन और पाकिस्तान के पास 24 फाइटर स्क्वेडन है।



राफेल फाइटर विमानों की खरीद पर हो रहे सियासी बवाल का असर सेना की लांगटर्म प्लानिंग पर पड़े बिना नहीं रह सकता है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सही हालात नहीं होगा। देश ने बहत्तरवें स्वाधीनता दिवस को उल्लास के सथ मनाया लेकिन स्वाधीनता शब्द की गरिमा पर ही ध्यान दिया। "स्वा" परिभाषित करता है कि हम खुद अपने नियंत्रण में रहेंगे। ऐसा होने पर सियासत इतनी हावी नहीं होगी कि हम सर्वोपरि राष्ट्र की सुरक्षा बहस तक सीमित कर दें। सत्ता पक्ष और विपक्ष को कुछ मुद्दे बहस के बजाए स्व विवेक पर छोड़ना होंगे। क्योंकि राष्ट्र सुरक्षित रहेगा तभी हमारी सियासत आबाद होगी। सस्ती लोकप्रियता के लिए राहुल गांधी ने महिला सुरक्षा पर तंज कसते हुए कह दिया कि तीन हजार साल पहले जैसी अराजक हालात हो गए है। इसकी क्या प्रामाणिकता है। दूसरे के अपशुगन के लिए अपनी नाक काटने की हमारी परंपरा नहीं रही है। अतीत की भूलों से जो सबक लेते है। वही समाज की विश्वसनीयता अर्जित करते है। दूसरों के प्रति जनअवधारणा का जाल बुनने में तथ्य और सत्य का सहारा लिया जाता है। हवा हवाई आरोप लगाकर विपक्ष नरेन्द्र मोदी सरकार की धवल कीर्ति को मलिन करने में अपना आंचल गंदा कर रहे है।







? भरतचन्द्र नायक

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