श्रद्धा का दूसरा नाम है जिसमें पितरों के प्रति भक्ति और कृतज्ञता का समावेश होता है। वर्ष में 365 दिनों में 16 दिन ऐसे होते हैं जब मृतात्माओं के लिए सवेरा होता है, उनके लिए दिन होता है। 349 दिन उनके लिए रात्रि का अँधेरा रहता है। ये 16 दिन पितृपक्ष के दिन कहलाते हैं। इन महत्वपूर्ण दिनों में मृतात्माओं के नाम पर श्रद्धा पूर्वक दिया गया अन्न-जल, वस्त्र ब्राह्मणों को दिया जाता है, वह सूक्ष्म रूप से उन्हें प्राप्त हो जाता है और पितृ लोग संतुष्ट होकर पूरे वर्ष आशीष की वर्षा करते रहते हैं।
देश काल च पात्रे च श्रद्धया विधिना च यत्।
पितृनुद्दिश्य विप्रेभ्यो दत्तं श्राद्धमुदाहृतम्।।
(देश काल और पात्र में श्रद्धा द्वारा जो भोजन पितरों के उद्देश्य से ब्राह्मण को दिया जाता है, श्राद्ध कहलाता है।)
गीता में बताया गया है श्राद्ध का महत्व
भारतीय दर्शन में श्राद्ध का बहुत महत्व है। चाहे वह वैज्ञानिक दृष्टि से हो या हो आध्यात्मिक दृष्टि से। देखा जाय तो अपने मृत बंधुओं के प्रति श्रद्धापूर्वक किया गया कर्म जो हमें शांति देता है और परलोकगत आत्मा को भी देता है- शांति, वह है श्राद्ध। श्राद्ध कर्म आदि काल से हिन्दू धर्म संस्कृति का मुख्य भाग रहा है। इस पर थोडा विचार करना उचित है। आत्मा की अमरता के सिद्धान्त को स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण गीता में वर्णन करते हैं। आत्मा जब तक अपने परमात्मा से संयोग नहीं कर लेती तब तक विभिन्न योनियों भटकती रहती है और इस दौरान उसे श्राद्धकर्म से संतुष्टि मिलती है। श्राद्ध की बड़ी महिमा कही गयी है। लेकिन सूक्ष्म रूप से देखें तो श्राद्ध श्रद्धा का दूसरा नाम है जिसमें पितरों के प्रति भक्ति और कृतज्ञता का समावेश होता है। श्राद्धकर्म के विषय में अपस्तंब ऋषि कहते हैं जैसे यज्ञ के माध्यम से देवताओं को उनका भाग और शक्ति प्राप्त होती है, उसी प्रकार श्राद्ध और तर्पण से पितृलोक में बैठे पितरों को उनका अंश प्राप्त होता है।
पितरों की श्रेणियाँ
हिन्दू-पंचांग में पितरों के श्राद्धकर्म के लिए विशेष समय निर्धारित किया गया है जिसे पितृपक्ष कहते हैं। यह पक्ष आश्विन मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि से अमावस्या तक रहता है जिसमें व्यक्ति अपने दादा, परदादा, मृत पिता या माता का श्राद्ध करता है। शास्त्र में पितरों की भी कई श्रेणियाँ बतलायीं गयी हैं। जिस तिथि में व्यक्ति की मृत्यु होती है, उस तिथि के दिन मृत व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर पितृलोक से उस दिन लौट आता है, जहाँ पर उसकी मृत्यु हुई थी। अगर उसका उस तिथि पर श्राद्ध नहीं होता है, तो वह भूखा-प्यासा दुखी होकर लौट जाता है और जीवित पुत्र-पौत्रों को श्राप देता है। इससे उस घर पर पितृदोष लग जाता है। घर की सुख-शान्ति चली जाती है। इनके श्राप से कुल का वंश आगे नहीं बढ़ पाता है अर्थात् वह व्यक्ति पुत्रहीन हो जाता है और मरने पर उसे भी अन्न-जल की प्राप्ति नहीं होती है।
श्राद्ध करने के अधिकारी
पुत्र, पत्नी, सहोदर भाई आदि श्राद्ध करने के अधिकारी होते है अर्थात् सबसे पूर्व मृतक का पुत्र श्राद्ध करे, यदि पुत्र नहीं हो तो पत्नी श्राद्ध करे। पत्नी भी न होने पर सहोदर भाई आदि क्रमश: श्राद्ध करे। पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, पुत्री का पुत्र, पत्नी का भाई, भाई का पुत्र, पिता, माता, बहू, बहिन सपिण्ड सोदक इनमें पूर्व के न होने से पिछले-पिछले पिण्ड के दाता कहे गये है।
श्राद्ध की महत्वपूर्ण तिथियां
श्राद्ध तिथि
श्राद्ध 24-09-2018 (भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा) से 08-10-2018 (आश्विन कृष्ण अमावस्या)
श्राद्ध करने का समय - अपरान्ह काल का समय (दोपहर 01:30 से 03:50 बजे तक)
पूर्णिमा का श्राद्ध -24 सितंबर सोमवार प्रातः 07.18 के बाद शुरू होगा।
प्रतिपदा( एकम् ) का श्राद्ध - 25 सितंबर मंगलवार प्रातः 8.00 के बाद शुरू होगा ।
द्वितीय का श्राद्ध - 26 सितंबर बुधवार प्रातः 08.57 के बाद शुरू होगा ।
तृतीया का श्राद्ध - 27 सितंबर वीरवार प्रातः 9.03 के बाद शुरू होगा।
चतुर्थी का श्राद्ध - 28 सितंबर शुक्रवार प्रातः 08.45 के बाद शुरू होगा।
पंचमी का श्राद्ध - 29 सितंबर शनिवार 08.04 के बाद शुरू होगा।
षष्टी का श्राद्ध - 30 सितंबर रविवार 07.04 के बाद शुरू होगा।
सप्तमी का श्राद्ध - 01 अक्टूबर सोमवार पूरा दिन तिथि रहेगी।
अष्टमी का श्राद्ध - 02 अक्टूबर मंगलवार पूरा दिन तिथि रहेगी।
नवमी का श्राद्ध - 03 अक्टूबर बुधवार पूरा दिन तिथि रहेगी। सौभाग्यवतीनां श्राद्ध
दशमी का श्राद्ध - 04 अक्टूबर वीरवार पूरा दिन तिथि रहेगी ।
एकादशी का श्राद्ध - 05 अक्टूबर शुक्रवार पूरा दिन तिथि रहेगी।
द्वादशी का श्राद्ध - 06 अक्टूबर शनिवार तिथि बाद दोपहर 4:41 तक रहेगी।
त्रयोदशी का श्राद्ध - 07 अक्टूबर रविवार तिथि बाद दोपहर 02.03 तक रहेगी।।
चतुर्दशी का श्राद्ध - 08 अक्टूबर सोमवार तिथि प्रात:11.32 तक रहेगी। शस्त्र दुर्घटनादि मृतकों के लिए श्राद्ध 11.32 से पहले।
अमावस्या का श्राद्ध - 08 अक्टूबर सोमवार प्रात: 11.32 के बाद अमावस का श्राद्ध करें।
सर्वपितृ श्राद्ध व अमावस्या (वे सभी जातक जिनकी मृत्यु तिथि का हमें ज्ञान नहीं है, उन सभी का श्राद्ध इस दिन कर सकते है)
9 अक्टूबर 2018- मातामही-मातामह श्राद्ध।
पितृ पक्ष: पितरों की कृपा पाने का दिन होता है श्राद्ध पक्ष, मिलता है कई गुना फायदा
Place:
Bhopal 👤By: डिजिटल डेस्क Views: 6908
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