भारत ने मंगलवार की रात आठ बजे 700 किलोमीटर रेंज की अग्नि-1 मिसाइल का यूज़र ट्रायल किया था.
यूज़र ट्रायल का मतलब है कि कहीं हमला करने से पहले उसे परखना कि निशाने तक जाने में सक्षम है या नहीं. मतलब इस्तेमाल से पहले की जांच. यह परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल है.
यूज़र ट्रायल में मिसाइल की क्षमता और तैयारी की परख की जाती है. इसमें किसी एक लक्ष्य को तय किया जाता है और मिसाइल वहीं दागी जाती है.
बंगाल की खाड़ी में इंडियन आर्मी स्ट्रैटेजिक फ़ोर्सेज कमांड ऑफ़ अब्दुल कलाम द्वीप से इसे अंजाम दिया. यह ओडिशा का तटीय इलाक़ा है.
अप्रैल 2014 में भी इसका नाइट यूज़र ट्रायल किया गया तो काफ़ी चर्चा हुई थी. अग्नि-1 का यह दूसरी बार यूज़र ट्रायल हुआ है.
रात में यह ट्रायल इसलिए किया जाता है क्योंकि रणनीतिक रूप से रात में भी हमला कर सकने की इसकी क्षमता को परखा जा सके और ये पता लगाया जाए कि रात में इस मिसाइल को दागने में किस तरह की चुनौतियां सामने आती हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई ने भारत के रक्षा सूत्रों के हवाले से बताया है कि जहां से इस मिसाइल को दागा जाता है उस पर रडार, टिलमेट्री ऑब्ज़र्वेशन स्टेशन, इलेक्ट्रो-ऑप्टिक उपकरण और युद्धपोतों से नज़र रखी जाती है. इन्हीं के ज़रिए देखा जाता है कि मिसाइल निशाने पर दगी या नहीं.
अग्नि-1 सबसे छोटी रेंज की मिसाइल है जो कि परमाणु हथियारों से लैस है. अग्नि-1 के बाद मध्यम दूरी की अग्नि-2 बैलिस्टिक मिसाइल, अग्नि-3 और अग्नि-4 मिसाइल आ गई है. अग्नि-5 भी जल्द ही भारतीय सेना को मिल सकती है. अग्नि-1 परणाणु हथियारों से लैस भारत की पहली मिसाइल है जिसका परीक्षण 1980 के दशक के आख़िर में किया गया था.
अग्नि-1 को पाकिस्तान के ख़तरों को ध्यान में रखते हुए विकसित किया गया था. फेडरेशन ऑफ अमरीकन साइंटिस्ट के हंस क्रिसटेंसन और रॉबर्ट एस नोरिज के अनुसार भारत के पास अग्नि-1 के लिए 20 लॉन्चर्स हैं. ऐसा माना जाता है ये लॉन्चर्स रोड और रेल मोबाइल दोनों के लिए हैं.
अग्नि-1 का वजन 12 टन है और लंबाई 15 मीटर है. 1000 किलोग्राम तक विस्फोटक सामग्री लेकर यह मिसाइल टारगेट पर जा सकती है.
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनिया के केवल पाँच देश हैं जो पृथ्वी के किसी भी कोने में मिसाइल दाग सकते हैं. ये देश हैं- रूस, अमरीका, चीन, ब्रिटेन और फ़्रांस. सेंटर फोर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के सहायक निदेशक इआन विलियम्स का कहना है कि दुनिया एक बार फिर मिसाइल रेस में जा रही है.
विलियम्स का कहना है कि ज़्यादातर देशों ने बेकार तकनीकों के ज़रिए मिसाइलों को विकसित किया है, इसलिए इनकी मिसाइलें अचूक नहीं हैं. विलियम्स का कहना है कि इन मिसाइलों से आम लोगों की जान को ख़तरा है. यह भी डर जताया जा रहा है कि ये मिसाइलें कहीं चरमपंथियों के हाथ न लग जाएं.
मध्य-पूर्व और एशिया में मिसाइलों की होड़ सबसे ज़्यादा है. विलियम्स का कहना है कि ये देश क्षेत्रीय अशांति का हवाला देकर मिसाइलें विकसित कर रहे हैं मगर इसकी क़ीमत पूरी दुनिया को चुकानी पड़ेगी.
एनवाईटी की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर कोरिया के पास 1990 के दशक में 745 मील रेंज की मिसाइल थी जो अब आठ हज़ार मील की रेंज तक पहुंच गई है. यह आधी दुनिया को निशाने पर ले सकती है और इसमें अमरीका के कुछ हिस्से भी शामिल हैं.
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि ईरान, उत्तर कोरिया और पाकिस्तान का मिसाइल डिवेलपमेंट प्रोग्राम भी बहुत तगड़ा है और इनकी तकनीक में भी समानता हैं. पाकिस्तान ने मिसाइल तकनीक में 1990 में निवेश करना शुरू किया था.
ऐसा कहा जाता है कि चीन ने इस मामले में पाकिस्तान को मदद की है. 2000 के दशक के मध्य में पाकिस्तान ने ऐसी क्षमता हासिल कर ली थी कि वो भारत के ज़्यादातर हिस्सों को अपने निशाने पर ले ले. पाकिस्तान भारत को अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानता है.
भारत की मिसाइलों में भी पूरे पाकिस्तान को निशाने पर लेने की क्षमता है और चीन के ज़्यादातर इलाक़े भी इसमें आ जाते हैं. भारत अब रूस के साथ मिलकर क्रूज़ मिसाइल विकसित करने पर काम कर रहा है.
सऊदी अरब और इसराइल ने 1990 के दशक में ही पूरे ईरान पर मिसाइल की पहुंच की क्षमता हासिल कर ली थी. हालांकि अब ईरान भी इस हालत में है.
कहा जाता है कि ईरान ने उत्तर कोरिया से तकनीक हासिल की है. कहा जाता है कि जब पिछले साल नवंबर में यमन से हूती विद्रोहियों ने सऊदी की राजधानी रियाद पर मिसाइल दागी तो ईरान की मिसाइल क्षमता साबित हो गई थी.
भारत ने जब अग्नि-4 और अग्नि-5 मिसाइल का परीक्षण किया था तो चीनी मीडिया में यह चर्चा ज़ोर-शोर से शुरू हो गई थी कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र की तय रेंज को तोड़ा है.
चीनी मीडिया ने यहां तक कहना शुरू कर दिया था कि पाकिस्तान को भी यह विशेषाधिकार मिलना चाहिए. अग्नि-5 तकरीबन 5000 किलोमीटर की दूरी तक मार कर सकती है. इसे इसी रेंज की इंटरकॉन्टिनेंटल मिसाइल कहा जाता है.
हालांकि भारत परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर 'नो फ़र्स्ट यूज' की नीति पर प्रतिबद्धता जताता है, लेकिन 2016 में भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि भारत नो फ़र्स्ट यूज की नीति से क्यों बंधा रहेगा. नो फ़र्स्ट यूज नीति का मतलब है कि भारत पर कोई परमाणु हथियार का इस्तेमाल करेगा तभी भारत इसका जवाब देगा.
भारत ने रात में क्यों किया अग्नि-1 का यूज़र ट्रायल
Place:
Delhi 👤By: PDD Views: 6571
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