राज्य सरकार ने की नवीन व्यवस्था, पहले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी बनते थे
3 अगस्त 2019। प्रदेश में अब दिव्यांगता के प्रमाण-पत्र सिर्फ सरकारी जिला चिकित्सालयों में ही बनेंगे। पहले ये प्रमाण-पत्र प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी बन जाते थे। इस संबंध में राज्य सरकार ने नवीन व्यवस्था कर दी है। ऐसा करने का कारण यह है कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2016 में जो दिव्यांगजन अधिकारी अधिनियम 2016 बनाया है उसमें कई नई दिव्यांगतायें भी जोड़ दी हैं तथा इन नई दिव्यांगताओं को आंकने का कार्य सिर्फ सुविधा सम्पन्न जिला चिकित्सालयों में ही हो सकता है।
केंद्र सरकार के नये दिव्यांगजन अधिकार कानून के तहत अब आठ प्रकार की दिव्यांगतायें हो गई हैं। इस कानून के अमलीकरण हेतु राज्य सरकार ने दिव्यांगजन अधिकार नियम 2017 बनाये हैं। अब इन्हीं नियमों के तहत दिव्यांगजनों को सरकारी सुविधायें लेने के लिये अपनी दिव्यांगता का प्रमाण-पत्र बनवाना होगा लेकिन ये प्रमाण-पत्र सिर्फ जिला चिकित्सालयों में बनेंगे।
यह की गई है नई व्यवस्था :
राज्य के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी नवीन व्यवस्था के अनुसार, गतिविषयक दिव्यांगता जिसमें प्रमस्तिष्क घात, कुष्ठ रोग मुक्त, बज्ञेनापन, तेजाब हमला पीडि़त, पेशीय दुष्पोषण शामिल है, को प्रमाण-पत्र देने के लिये प्रमुख अधिकारी सिविल सर्जन या सीएमओ द्वारा नामनिर्दिष्ट कोई समकक्ष अधिकारी होगा जबकि सदस्य भौतिक चिकित्सा एवं पुनर्वास में विशेषज्ञ या अस्थिरोग में विशेषज्ञ होगा। इसी प्रकार, दृष्टिक्षीणता का प्रमाण-पत्र जिला चिकित्सालय का नेत्र रोग विशेषज्ञ होगा तथा इस प्रमाण-पत्र को सिविल सर्जन या सीएमओ द्वारा मनोनीत समकक्ष अधिकारी प्रतिहस्ताक्षरित करेगा। श्रवण दोष का प्रमाण-पत्र जिला चिकित्सालय के सिविल सर्जन या सीएमओ द्वारा मनोनीत व्यक्ति प्रमुख अधिकारी होगा और सदस्य ईएनटी विशेषज्ञ होगा। बौध्दिक दिव्यांगता का प्रमाण-पत्र हेतु प्रमुख अधिकारी जिला अस्पताल का सिविल सर्जन या सीएमओ द्वारा नामनिर्दिष्ट कोई समकक्ष अधिकारी होगा तथा तीन सदस्य शिशु रोग विशेषज्ञ, नैदानिक या पुनर्वास मनोचिकित्सक तथा मनोचिकित्सक होंगे। विशेष अधिगम अक्षमता जिसे स्पेशल लर्निेग डिसएबेलिटी कहा जाता है, के लिये प्रमुख अधिकारी जिला चिकित्सालय का सिविल सर्जन या सीएमओ द्वारा नामनिर्दिष्ट कोई समकक्ष अधिकारी होगा तथा तीन सदस्य शिशु रोग विशेषज्ञ, नैदानिक या पुनर्वास मनोचिकित्सक एवं व्यवसायिक चिकित्सक होगा। मानसिक अस्वस्थ्यता दिव्यांगता हेतु जिला चिकित्सालय का प्रमुख अधिकारी सिविल सर्जन या सीएमओ द्वारा नामनिर्दिष्ट कोई समकक्ष अधिकारी होगा एवं सदस्य नैदानिक मूल्यांकन हेतु मनोचिकित्सक एवं बौध्दिक स्तर के मूल्यांकन के लिये प्रशिक्षित मनोचिकित्सक होगा। चिरकारी तंत्रिका संबंधी दशाओं के कारण होने वाली दिव्यांगता हेतु जिला चिकित्सालय का प्रमुख अधिकारी सिविल सर्जन या सीएमओ द्वारा नामनिर्दिष्ट कोई समकक्ष अधिकारी होगा एवं तीन सदस्य स्नायु रोग विशेषज्ञ, गतिविषयक विशेषज्ञ एवं प्रशिक्षित मनोचिकित्सक होगा। रक्त विकार के कारण कारित दिव्यांगता हेतु जिला अस्पताल का प्रमुख अधिकारी सिविल सर्जन या सीएमओ द्वारा नामनिर्दिष्ट कोई समकक्ष अधिकारी होगा एवं तीन सदस्य शिशु रोग विशेषज्ञ, अस्थि रोग शल्य चिकित्सक एवं संबंधित विशेषज्ञ होगा। बहुविकलांगता हेतु जिला अस्पताल का प्रमुख अधिकारी सिविल सर्जन या सीएमओ द्वारा नामनिर्दिष्ट कोई समकक्ष अधिकारी होगा एवं सदस्य दिव्यांगता का आंकलन करने वाला अपेक्षित विशेषज्ञ होगा।
अपील भी की जा सकेगी :
यदि जिला चिकित्सालय के उक्त प्राधिकृत लोग दिव्यांगता का प्रमाण-पत्र देने से इंकार करते हैं तो दिव्यांग व्यक्ति संबंधित जिले के क्षेत्रीय संयुक्त संचालक स्वास्थ्य के समक्ष अपील कर सकेगा तथा इस अपील का निपटारा एक माह के अंदर होगा।
पुरानी व्यवस्था रद्द की :
राज्य सरकार ने दिव्यांगजनों को उनकी दिव्यांगता का प्रमाण-पत्र देने हेतु पांच साल पहले 4 जनवरी 2014 को जो व्यवस्था की थी उसे अब रद्द कर दिया गया है। इस पुरानी व्यवस्था में जिला चिकित्सालय के अलावा सिविल अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एवं सिविल डिस्पेंसरी में भी वहां का चिकित्सा अधिकारी दिव्यांगता का प्रमाण-पत्र देने के लिये अधिकृत था।
विभागीय अधिकारी ने बताया कि नये कानून के तहत नई दिव्यांगतायें बढ़ी हैं उनका आंकलन सुविधा सम्पन्न जिला चिकित्सालयों में ही हो सकता है। इसलिये अब यह नई व्यवस्था की गई है।
- डॉ. नवीन जोशी
दिव्यांगता के प्रमाण-पत्र अब सिर्फ जिला चिकित्सालयों में ही बनेंगे
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Bhopal 👤By: DD Views: 2182
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