×

नक्सलियों की नौटंकी और माओवादियों की राष्ट्र द्रोहिता

News from Bhopal, Madhya Pradesh News, Heritage, Culture, Farmers, Community News, Awareness, Charity, Climate change, Welfare, NGO, Startup, Economy, Finance, Business summit, Investments, News photo, Breaking news, Exclusive image, Latest update, Coverage, Event highlight, Politics, Election, Politician, Campaign, Government, prativad news photo, top news photo, प्रतिवाद, समाचार, हिन्दी समाचार, फोटो समाचार, फोटो
Place: Bhopal                                                👤By: DD                                                                Views: 7751

--रमेश शर्मा

छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले की एक बड़ी घटना हुई । नक्सलियों ने अपनी क्रूर कुटिल योजना से बाईस जवानों को शहीद कर दिया और एक जवान पकड़ कर ले गये । तीन दिन बाद पंचायत लगाने की नौटंकी करके जवान को रिहा कर दिया । यह उनकी रणनीति का हिस्सा थी । माओवादियों ने इस रिहाई के लिये तारीफ के पुल बांधना आरंभ कर दिये और सुरक्षा बलों की भूमिका को आक्रामक माना । निसंदेह माओवादियों की इस अभिव्यक्ति को राष्ट्रद्रोह की सीमा में ही माना जाना चाहिए ।
एक तरफ नक्सलियों ने जवान को रिहा किया और दूसरी तरफ माओवादियों और उनके समर्थकों के ट्यूट सोशल मीडिया पर आरंभ हो गये । यह केवल एक संयोग नहीं है और न किसी घटना की सामयिक प्रतिक्रिया । यह एक निश्चित रणनीति का अंग सो सकती है । इसका कारण यह है कि नक्सलियों और माओवादियों को अलग करके नहीं देखा जा सकता । वे दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, एक सिक्के के दो पहलू हैं । इनके तार चीन से जुड़े हैं । यह साम्यवाद के उसी हिंसक अभियान की शाखाएँ हैं जो हिंसा और विद्रोह के रास्ते से सत्ता पर काबिज होते हैं । दुनियाँ के जिन देशों में साम्यवादियों ने सत्ता प्राप्त की उसका रास्ता यही रहा । साम्यवादियों ने इसी रास्ते से सत्ता पर कब्जा जमाया । हालांकि भारत में केरल और पश्चिम बंगाल में सत्ता तक पहुँचने का रास्ता दूसरा था लेकिन परदे के पीछे हिंसक टोलियाँ वहां भी सक्रिय रहीं । इन प्रांतों से आये दिन आने वाले समाचार इसका प्रमाण हैं । काम करने की उनकी अपनी शैली होती है । इसके लिये वे पहले सत्ता से मिलकर अपना नेटवर्क खड़ा करते हैं और ताकतवर होने के बाद खुलकर सामने आते हैं । रूस में जारशाही के समय भी उन्होंने यही किया और चीन में भी यही रास्ता अपनाया । भारत में भी अपना रहे है । अपनी जड़े जमाने के लिये भारत में वे पहलेअंग्रेजों के साथ रहे, कांग्रेस सत्ता में आई तो उसके साथ हो गये । कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई तो 1977 और 1989 की गैर कांग्रेस सरकार के समर्थक हो गये । एक शाखा यदि सफेदपोश होकर सार्वजानिक बौद्धिकता का वातावरण बनाती है तो दूसरी शाखा नक्सलवादियों और माओवादियों के रूप में हाथ में बंदूक लेकर सुरक्षा बलों को निशाना बनाती है, लोगों को डराकर अपनी बातों पर मुहर लगवाती है और पैसा वसूलती है ।
नक्सलियों और माओवादियों की हर हिंसक वारदात में ये बातें साथ साथ दिखतीं हैं । छत्तीसगढ़ के हमले में भी दिखीं । एक तरफ यदि नक्सलियों ने घेर कर जवानों के प्राण लिये तो दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर इस हिंसा के समर्थक मैदान में आ गये । वे नक्सलियों को क्राँतिकारी बताने लगे । सुरक्षा बलों के जवानों को अत्याचारी बताने लगे । कुल वक्तव्य वीरों ने तो ब्यान भी जारी कर दिये। हालाँकि एक दो के विरुद्ध मुकदमा दर्ज होंने और गिरफ्तारी की भी खबर आई पर इससे उनका अभियान न रुका । और छत्तीसगढ़ में जवान की रिहाई को मुद्दा बनाकर फिर नक्सलियों की तारीफ की जाने लगी और उन्हे जनवादी चेहरा साबित करने की मुहिम आरंभ हो गयी । नक्सलियों और माओवादियों का किसी मानवीयता पर भरोसा नहीं होता । वे न केवल सुरक्षा बलों को निशाना बनातें हैं बल्कि सुरक्षा बलों के संकेतकों को बी बेरहमी से मार डालते हैं । ऐ हत्याएँ वे क्रूरता से करते हैं भीड़ जुटा करते हैं ताकि दहशत फैले और लोग आगे हिम्मत न करें । इस क्रूर मानसिकता के लोग, बाईस जवानों की हत्या करने वाले लोग किसी एक जवान को मानवीयता के आधार पर रिहा कर देंगे यह बात समझ से परे है । यह सब नक्सलियों की रणनीति है । मानवीयता दिखाने की नौटंकी है । जो खबरें आईं सोशल मीडिया पर जो ट्यूट देखे गये उनके अनुसार नक्सलियों ने पंचायत बुलाई । लोगों से पूछा कि रिहा किया जाय न नहीं । लोगों ने सुरक्षा बल की शैली को हिंसक और अत्याचारी बताया और न छोड़ने की सलाह दी लेकिन मध्यस्थों का मान रखने और समस्याओं का समाधान बातचीत के आधार पर निकालने की पहल के लिये जवान को रिहा करने करने का निर्णय दर्शाया गया ।
यह जनसभा और बात चीत का रास्ता खोलने की नौटंकी केवल इसलिये की गयी कि भारत सरकार के गुस्से को कम किया जा सके । छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की बहुत वारदातें हुईं हैं । लेकिन यह पहला अवसर है जब केन्द्रीय गृहमंत्री अपने सारे कार्यक्रम छोड़ कर छत्तीसगढ़ पहुंचे । जवानों से मिले । यह बात दुनियाँ जानती है कि यह सरकार हिंसकों और अपराधियों पर कोई रियायत नहीं करती । ऐसा कश्मीर की हर घुसपैठ पर देखा गया । केन्द्रीय गृहमंत्री अमितशाह ने अपनी छत्तीसगढ़ यात्रा में भी यही संदेश दिया । यह माना जा रहा था कि केन्द्र सरकार सुरक्षा बलों को वैसी ही स्वतंत्र कार्यवाही की छूट देगी जो कश्मीर में सुरक्षा बलों को दी गई । निसंदेह भारत सरकार की आस शैली का प्रभाव पड़ा और सरकार का गुस्सा कम करने के लिये एक रास्ता बनाया गया । अपहृत जवान को रिहा कर दिया गया । ऐसा करके बाईस जवानों की शहादत को ढांकने की कुटिल रणनीति अपनाई गयी है । यदि यह उनकी रणनीति का हिस्सा न होता तो नक्सल और माओ समर्थक बुद्धिजीवी इसे बातचीत का रास्ता खुलने की पहल न कहते । इनमें से अधिकांश ट्यूट ऐसे नामों से आयें हैं जो समय समय पर विभिन्न सरकारी विभागों पर शोषण का आरोप लगाते हैं और वनवासियों को सनातनी समाज से पृथक बताते हैं । नगरीय समाज को शोषक बताते हैं और हिंसा के लिये आक्रामक बताते हैं । इस घटना में भी ऐसा ही हुआ था । माओवादियों ने पहले नक्सलियों के हमले को जायज बताया गया, सुरक्षा बलों की शैली को प्रताड़ित करने वाला बताया और अब रिहाई को मानवीयता की पराकाष्ठा ।
समाज और सरकार दोनों को इस तथ्य पर विचार करना होगा । नक्सलियों द्वारा एक जवान की रिहाई संतोष की बात है प्रसन्नता की बात है लेकिन बाईस जवानों की शहादत को नहीं भूलना है । बाईस जवान ही क्यों नक्सलियों ने न केवल छत्तीसगढ़ अपितु मध्यप्रदेश, उड़ीसा, आन्ध्र और महाराष्ट्र में कितना खून बहाया है । कितना विकास रोका है । कितना रुपया बसूला है उन सबका हिसाब करने का समय आ गया है । नक्सलियों और माओवादियों का चेहरा राष्ट्र को क्षति पहुंचाने वाला है । उनकी गतिविधियाँ राष्ट्रद्रोह की सीमा में आतीं हैं । भला
कोई सुरक्षा बलों के विरुद्ध बोले, सुरक्षा बलों पर हमला करे, लोगों को हमले के लिये उकसाये तो यह राष्ट्र द्रोह माना जायेगा कि नहीं ? नक्सली यही कर रहे हैं । माओवादी भी यही कर रहे हैं । इनपर इसी विचार से सख्त कार्यवाही आवश्यक है तभी इन जवानों की शहादत से व्यथित जन मानस को राहत मिल सकेगी



Related News

Global News