भारत की जनसंख्या वृद्धि को संतुलित करने जिस तरह से उत्तर प्रदेश से प्रारंभ होकर अन्य कुछ अन्य भाजपा शासित राज्यों ने इसके नियंत्रण के लिए कानून सम्मत कदम उठाना शुरू कर दिए हैं, उसे आज कांग्रेस नेता एवं तमाम विपक्ष यह आरोप लगा रहे हैं कि इसके पीछे की मंशा एक 'समुदाय विशेष' को निशाना बनाने की है। खुलकर कहें तो ये सभी कह रहे हैं कि ''मुसलमानों'' को भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश से शुरूआत करते हुए पूरे देश में प्रयोगशाला के रूप में टार्गेट करना चाह रही है, प्रयोग के तौर पर उत्तर प्रदेश से इसका आरंभ योगी सरकार से हुआ है। शशि थरूर जिनकी अपनी छवि एक 'बौद्धिक' की है, जब देश हित से परे जाकर इस तरह की बात कहते नजर आते हैं, तब अवश्य ही बहुत दुख होता है कि व्यक्ति राजनीति से ऊपर उठकर इसलिए नहीं बोलना चाहता, क्योंकि उसे इसका लाभ अपने हित में कहीं दिखाई नहीं देता है। किंतु क्या व्यक्तिगत हित, राष्ट्र और राज्य हित के भी ऊपर होना चाहिए? आखिर यह राजनीति किसलिए है? राष्ट्र के लिए या व्यक्ति के अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए? आज ऐसे तमाम प्रश्न हैं जिन्हें उन सभी से पूछा जा रहा है जोकि देश में ''जनसंख्या नियंत्रण'' का विरोध कर रहे हैं ।
यहां पहले बात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर की करते हैं, वे आज आरोप लगा रहे हैं कि इस मुद्दे (जिनसंख्या) को उठाने के पीछे की बीजेपी की मंशा राजनीतिक है। इसका कुल मकसद एक 'समुदाय विशेष' को निशाना बनाना है । इसलिए भाजपा सुनियोजित मकसद से इस मुद्दे को उठा रही है । थरूर के मुताबिक, 'यह कोई इत्तेफाक नहीं है कि उत्तर प्रदेश, असम और लक्षद्वीप में आबादी कम करने की बात हो रही है, जहां हर कोई जानता है कि उनका इरादा किस ओर है। ' वे कह रहे हैं 'हमारी राजनीतिक व्यवस्था में हिंदुत्व से जुड़े तत्वों ने आबादी के मुद्दे पर अध्ययन नहीं किया है। उनका मकसद विशुद्ध रूप से राजनीतिक और सांप्रदायिक है। ' कुल मिलाकर अभी जनसंख्या को लेकर बहस पूरी तरह ठीक नहीं है । पूर्व केंद्रीय मंत्री थरूर का मानना है कि अगले 20 साल बाद हमारे लिए बढ़ती जनसंख्या नहीं एजिंग पॉपुलेशन प्रॉब्लम होगी ।
वस्तुत: आज थरूर की यह टिप्पणी इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि हाल ही में उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण विधेयक का एक मसौदा सामने रखा गया है, जिसमें प्रावधान है कि जिनके दो बच्चों से अधिक होंगे उन्हें सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित किया जाएगा और दो बच्चों की नीति का अनुसरण करने वालों को लाभ दिया जाएगा। यहां अव्वल तो यह है कि थरूर जिस 20 साल बाद एजिंग पॉपुलेशन प्रॉब्लम की बात कह रहे हैं, उसका कोई आधार इसलिए नहीं है क्योंकि जनसंख्या पर कोई पूरी तरह से रोक नहीं लगने जा रही है। बच्चे पैदा होते रहेंगे और भारत में हर वर्ष युवाओं की संख्या में भी इजाफा होता रहेगा, हां इतना अवश्य होगा कि जिस तरह से वर्तमान में जनसंख्या विस्फोट हो रहा है, उस पर कुछ लगाम लगेगी।
फिर जिस जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर यह कहा जा रहा है कि इसका कुल मकसद एक 'समुदाय विशेष' को निशाना बनाना है तो यह कहना भी इसलिए निराधार है क्योंकि उत्तर प्रदेश सहित संपूर्ण देश में अधिकांश राज्यों की कुल जनसंख्या में हिन्दू आबादी ही अधिक है, स्वभाविक है कि जन्म दर जनसंख्या के अनुपात में उनकी ही अधिक है, ऐसे में जब यह जनसंख्या नियंत्रण का कानून यदि किसी राज्य में व्यवहार में लाया जाता है तो स्वभाविक है कि इसका असर यदि किसी पर अधिक होगा तो वे हिन्दू ही हैं।
पिछले साल भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं हिमाचल प्रदेश पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर बहुत ही विस्तार से बताया था कि कैसे जनसंख्या का भारत जैसे देश में अनियंत्रित रूप से बढ़ना उसके लिए संकट खड़ा कर रहा है। उन्होंने इस पत्र में कहा था कि देश की राजधानी विश्व के 190 देशों की राजधानियों में सबसे अधिक प्रदूषित हो गई है। उत्तर में हिमालय और दक्षिण में समुद्र से सजा हुआ भारत आज प्रदूषण से कराह रहा है। उन्होंने इस बात पर हैरानी प्रकट की थी कि इस समस्या के असली कारण को नहीं देखा जा रहा। भारत स्वतंत्रता के बाद 35 करोड़ से बढ़ते बढ़ते आज 141 करोड़ आबादी वाला दुनिया को दूसरा सबसे बड़ा देश बना गया है। आबादी के साथ-साथ सब कुछ बढ़ता है। यही प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है। प्रदूषण ही नहीं देश में बढ़ती गरीबी और बेरोजगारी का कारण भी जनसंख्या विस्फोट है।
वे यहां लिखते हैं कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले छह सालों में गरीबी और बेरोजगारी को दूर करने के लिए हर संभव प्रयत्न हुए हैं। उसके बाद भी ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रतिदिन 19 करोड़ लोग भूखे पेट सोते हैं। बेरोजगारी के कारण युवा पीढ़ी हताश और निराश है और आत्महत्याएं बढ़ रहीं हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को सुझाव दिया था कि अतिशीघ्र पहल करें। देश में एक कानून बने और एक ही नारा हो। हम दो हमारे दो । अब यह अलग बात है कि केंद्र के स्तर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जनसंख्या नियंत्रण पर राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन (एनडीए) में सहमति बनानी है जबकि उत्तर प्रदेश में इस प्रकार की कोई सहमति की आवश्यकता योगी सरकार को नहीं है, इसलिए यह पहल आज उत्तर प्रदेश से सबसे पहले सामने आई है।
वस्तुत: होना यह चाहिए था कि देश भर में कांग्रेस एवं अन्य दल भी इस जनसंख्या नियंत्रण के लिए योगी सरकार के प्रयासों का स्वागत करते नजर आते । प्रधानमंत्री मोदी पर भी यह दबाव बनाते कि वे भारत में अतिशीघ्र जनंसख्या नियंत्रण कानून लागू करें । क्योंकि यह किसी समुदाय विशेष से नहीं देश के विकास एवं उत्तरोत्तर उत्थान से जुड़ा फैसला है। यहां देखें, उत्तर प्रदेश की जनसंख्या नियंत्रण की नीति में वर्ष 2026 तक जन्म दर को प्रति हजार आबादी पर 2.1 तथा वर्ष 2030 तक 1.9 लाने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें बच्चों और किशोरों के सुंदर स्वास्थ्य, उनके शिक्षा के लिए भी कदम हैं। मसलन 11 से 19 वर्ष के किशोरों के पोषण, शिक्षा व स्वास्थ्य के बेहतर प्रबंधन के अलावा, बुजुर्गों की देखभाल के लिए व्यापक व्यवस्था है । इसके अलावा भी बहुत कुछ ऐसा इस नीति में है जोकि एक सुखद लोककल्याण कारी राज्य की जरूरतों को और कल्पनाओं को साकार रूप देता दिखाई देता है। पूरी नीति में कहीं विभेदीकरण नजर नहीं आता, किंतु दुर्भाग्य है कि जिन्हें आलोचना करनी है, वे इसे धर्म और एक समुदाय विशेष से जोड़कर देख रहे हैं।
यहां हम जनसंख्या से जुड़े आंकड़ों के आधार पर भी वर्तमान स्थिति की तुलना कर सकते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार देश के 33.96 करोड़ महिलाएं ऐसी हैं जिन्होंने शादी की और इनसे देश में कुल 91.50 करोड़ बच्चे हैं । मतलब औसतन हर महिला के 2.69 बच्चे हैं। देश की 53.58 फीसदी महिलाओं के दो या दो से कम बच्चे हैं, जबकि 46.42 फीसदी महिलाओं से दो से अधिक बच्चे हैं । जिसमें कि आज देश की आबादी में सबसे ज्यादा हिस्सा उत्तर प्रदेश का है । 2011 की जनगणना के अनुसार उप्र में कुल 19.98 करोड़ लोग रहते हैं । आबादी के हिसाब से देश में सबसे ज्यादा मुस्लिम भी उत्तर प्रदेश में ही रहते हैं । यहां औसतन हर महिला के 3.15 बच्चे हैं, जो कि राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। 55.8 फीसदी महिलाओं से दो से ज्यादा बच्चे हैं, जबकि देश का आंकड़ा 46.42 फीसदी है। इन आंकड़ों से भी समझा जा सकता है कि योगी सरकार जनसंख्या नियंत्रण से संबंधित कानून क्यों बनाना चाहती है।
यहां जिन्हें जनसंख्या के नियंत्रण में धर्म और समुदाय विशेष नजर आते हैं उन्हें इन आंकड़ों पर गौर करना चाहिए कि 2011 की जनगणना के ही अनुसार उत्तर प्रदेश की कुल आबादी 19.98 करोड़ में 15.93 करोड़ हिन्दू हैं जोकि कुल जनसंख्या का 79.73 फीसद है। 3.84 करोड़ मुस्लिम रहते हैं, जो कि कुल आबादी का 19.26 प्रतिशत है । उत्तर प्रदेश की औसतन हर महिला के 3.15 बच्चे हैं । हिन्दू महिलाओं के औसतन 3.06 बच्चे हैं, मुस्लिम महिलाओं के औसतन 3.6 फीसदी बच्चे हैं।
कुल मिलाकर जनसंख्या के अनुपात में इसे समग्रता से देखें तो आज जिस तरह से जनसंख्या यहां बढ़ रही है, उसमें हिन्दू और मुसलमानों की जनसंख्या बराबर से बढ़ती रहेगी। ऐसे में ना तो कभी उत्तर प्रदेश भविष्य में कभी भी मुस्लिम बहुल्य होने जा रहा है और ना ही यहां हिन्दू कभी अल्पसंख्यक होगा। बल्कि इस जनसंख्या के आनेवाले कानून से अधिकांश हिन्दुओं की आबादी ही कम होगी। उसका मूल कारण हिन्दुओं का स्वभाव है, जिसमें एक अच्छे खुशनुमा भविष्य को प्राथमिकता दी जाती है।
यह कहने के पीछे का तर्क यह है कि जब साल 2006 में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आई तो पहली बार भारत के मुस्लिम समाज में पिछड़ेपन को लेकर चर्चा होने लगी, किंतु इसके पीछे के कारणों को गंभीरता पूर्वक देखें तो कौन मुसलमानों को पीछे रखने के लिए जिम्मेदार नजर आता है? निश्चित ही वे स्वयं और उनका नेतृत्व जबकि इसके उलट हिन्दुओं में स्वविवेक अपनी पीढ़ियों को अच्छा माहौल एवं जीवन देने का शुरू से ही देखा जा सकता है। उनका नेतृत्व उनसे कुछ कहे या ना कहे परिवारिक व्यवस्था ही ऐसी है कि सबसे पहले सरकारी नौकरियों से लेकर अच्छे व्यापार की ओर ध्यान देकर 'मां लक्ष्मी' को प्रसन्न करने का उपक्रम हिन्दू स्वभावगत रूप से करता है और परिणाम स्वरूप मुसलमानों की जनसंख्या के अनुपात में अच्छा जीवन जीता है। इसलिए अभी भी जो जनसंख्या को लेकर योगी सरकार की नीति है, उससे सबसे अधिक हिन्दुओं की जनसंख्या पर ही नकारात्मक असर होनेवाला है, फिर भी अधिकांश हिन्दू इस नीति के समर्थन में नजर आ रहे हैं। क्योंकि उन्हें अपने बच्चों के लिए हर हाल में सुखद भविष्य चाहिए।
देखा जाए तो जनसंख्या नियंत्रण केवल कानून का नहीं, सामाजिक जागरूकता का भी विषय है विरोध का तार्किक आधार हो तो विचार किया जा सकता है लेकिन इसे मुसलमानों को लक्षित नीति कहना निराधार है। शशि थरूर जैसे राजनीतिक विद्वानों के साथ मुसलमानों की राजनीति कर रहे एडवोकेट असादुदीन ओवैसी हों या जयराम रमेश जैसे नेता। वस्तुत: जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने का राज्य के स्तर पर या देश में विरोध करनेवालों को आज यह समझना होगा कि भारत का भू-भाग नहीं बढ़ाया जा सकता, जितनी अधिक जनसंख्या उतना अधिक भार । सफल जीवन जीने के लिए जरूरी है अधिक आवश्यक संसाधन जुटाना। जनसंख्या निरंत्रण के विरोध में उभरते स्वर, भविष्य में विकसित देश बनने की प्रक्रिया के लिए भी भारत की आवश्यकताओं को समझें । युरोप के देशों के साथ ही खासकर अमेरिका से सबक लें और जनसंख्या के मामले में योगी से मोदी तक समर्थन में बिना राजनीतिक नफा-नुकसान देखें व देश हित में आगे आएं।
लेखक फिल्म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्य एवं पत्रकार हैं।
जनसंख्या के मुद्दे पर व्यर्थ है थरूर का तर्क : डॉ. मयंक चतुर्वेदी
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Bhopal 👤By: DD Views: 17539
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