
१४ अगस्त विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में अब मनना शुरु हुआ है, कैसी निर्दय स्मृति? एक तंग अनुमान के अनुसार भारत-पाक विभाजन में दस लाख से अधिक लोग मारे गए.लाखों स्त्रियों बलात्कार की शिकार हुई, उनका धर्म जबरन बदलवा दिया गया.कईयों ने अग्नि और बिना अग्नि के जौहर कर लिया.दुनिया के इतिहास में ऐसा कभी नही हुआ कि मजहब के आधार पर किसी देश का ऐसा बँटवारा हुआ हो.फिर भी न कोई जाँच हुई और न कोई आयोग बैठा. स्वाधीनता की इस क़ीमत पर देश ने चुप्पी साध ली.यहाँ तक कि इसकी यादों पर भी अघोषित रोक लगा दी गई. अब जाकर एक स्मृति मिली है. लाखों परिवारों की दर्दनाक कहानियाँ, इतिहास के कूड़ेदान में नही जा सकती हैं.
अपने ही देश में शरणार्थी बन गए लोगों में से एक कोटपुतली राजस्थान के कवि विजय नाविक ने लिखा कि-लहुलुहान था पंचनद, घायल नर अरु नार ।
लाखों मृत हो कर पड़े, बर्बर अत्याचार ।।
बँटवारे का दंश ये, देता अब तक टीस ।
धर्म बचा सिर दे दिए, बड़ी चुकाई फ़ीस ।।
कटी अनेकों नारियाँ, निर्मम लूटी लाज ।
आज़ादी का दाम सुन, झुका शर्म से आज ।।
आज़ादी के जश्न में, मस्ती करी क़बूल ।
लाखों की थी बलि चढ़ी, नेता बैठे भूल ।।
हावी जिहाद जब हुआ, शासक बैठे मौन ।
जुल्मों की तब अति हुई, रक्षा करता कौन?? अपने पुरुषार्थ से यहाँ आए हिन्दू और सिख फिर उठ खड़े हुए पर विश्वास मानिये एक अग्निकुण्ड अभी भी उनके सीनों में धधकता है.इस दिवस पर बँटवारे के उन अनाम बलिदानियों और पुरखी महिलाओं को प्रणाम!
-Lajpat Ahuja
Ex Director PR,Govt of MP,former Rector MCU