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कब हिन्दू आस्थावान भय तजेंगे ?

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Place: Bhopal                                                👤By: DD                                                                Views: 1413



के. विक्रम राव
ऊपर का अखबारी शीर्षक पढ़े (अमर उजाला: 24 अगस्त 2022: पृष्ठ 10: कालम 2 से 4)। एक सेक्युलर गणराज्य के चिंतनशील नागरिक के नाते आपकी क्या राय है ? ज्ञानवापी शिवालय (मस्जिद) किसका है? इस बिन्दु पर वाराणसी की जिला अदालत में हुयी बहस के दौरान इस्लामी पक्षधर ने कहा कि यह वक्फ संपत्ति है। मुगल बादशाह मोहिउद्दीन औरंगजेब आलमगीर ने इसे वक्फ को दान दिया था। यदि यह भूभाग औरंगजेब का तब (1659-1907) का था तो अब वह किसके अधिकार में होगा? स्पष्ट है कि भारत के निर्वाचित प्रधानमंत्री ( काशी से भाजपायी सांसद) नरेन्द्र दामोदरदास मोदी की सरकार का। (26 मई 2014 से) उन्हीं का राज है। उनके राज में मोदी ने ही बाबरी ढांचे को रामजन्मभूमि बनाकर हिन्दुओं को दिया। काशी में भी ऐसा ही किया। फिर काशी और मथुरा में भी वैसा ही कानून क्यों नहीं ? लॉ आफ कॉनक्वेस्ट (विजेता की विधि) इसे मान्यता देता है। क्योंकि अचल संपत्ति शासक की होती है। औरंगजेब के बाप-दादों से हथियाकर मिली थी। हालांकि मुस्लिम पक्षधर काशी कोर्ट में कोई विश्वनीय दस्तावेज जमा नहीं कर पाये।
हिंदू पक्ष के एडवोकेट विष्णु शंकर जैन का कहना है कि मुस्लिम पक्ष जवाबी बहस में अपनी ही दलीलों में फंस चुका है। उन्होंने कोर्ट में कागजात पेश कर बताया है कि ??ज्ञानवापी की संपत्ति वक्फ नंबर 100 के तौर पर दर्ज है, यह एक बहुत बड़ा फ्रॉड है। उन्होंने ज्ञानवापी से लगभग दो किलोमीटर दूर स्थित आलमगीर मस्जिद के कागजात पेश किए हैं।??
वह मस्जिद ??बिंदु माधव मंदिर?? को तोड़ कर बनाई गई थी। सभी जानते हैं कि ज्ञानवापी मस्जिद का नाम आलमगीर मस्जिद नहीं है। अब वह ज्ञानवापी मस्जिद को आलमगीर मस्जिद बता रहे हैं। औरंगजेब ने यदि ज्ञानवापी मस्जिद की संपत्ति का वक्फ किया था तो वह डीड लाकर जज को दिखाई जाए, लेकिन मस्जिद कमेटी नहीं दिखा पाई।
आधुनिक कानून का एक अन्य पहलू भी है। उसे लॉ आफ कॉनक्वेस्ट कहा जाता है। अर्थात इतिहास में जिसकी जीत दर्ज हुयी, कानून वही रचता है। खुद मुस्लिम पक्षधर ने इसे माना। तो शासक औरंगजेब से अब वक्फ बोर्ड से क्या ताल्लुक ?
लेकिन मसला यहां यही है कि ज्ञानवापी अजन्मे भोले शंकर की है न कि केवल तेरह सौ वर्ष पूर्व अवतरित हुये इस्लामियों की। भारत कभी ईसाई, फिर मुस्लिम-बहुल तुर्की जैसा नहीं हुआ था। इस्तांबुल में पहले हाजिया सोफिया चर्च था। अतातुर्क ने उसे सेक्युलर म्यूजियम बनाया। अब इस्लामिस्टों ने फिर मस्जिद बना दिया। अर्थात शासन का रूप बदलते ही हाजिया सोफिया भी बदल गया। ज्ञानवापी पर भी यही नियम लागू होता है।
इसी संदर्भ में स्वतंत्रता की कगार पर खड़े (1947) भारत में अंग्रेज शासकों ने ब्रिटेन लौटने की बेला पर पूछा था कि ??वे आजाद हिन्दुस्तान किस सत्ता को सौंपे ??? तो मोहम्मद अली जिन्ना का वकीलनुमा जवाब था: ??आपने अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर से सत्ता छीनी। अतः भारतीय मुसलमानों को सौंपिये।?? इस पर सरदार पटेल का प्रत्युत्तर सटीक था। वे बोले: ??बहादुर शाह मराठों का पेंशनर था। अतः मराठों को दीजिये। तब अपने घर की ओर प्रस्थान कीजिये।?? अर्थात औरंगजेब के काल से शासन और राज का आकार परिवर्तनशील रहा। इसके अतिरिक्त कोई अनिवार्यता नहीं है कि वर्तमान भारत सरकार और न्यायालय आयातीत जालिम बादशाह औरंगजेब की घोषणाओं, कानूनों और रिवाजों को पालन करने पर बाध्य है। स्वाधीन गणराज्य के अपने नियम और दस्तूर होते हैं। औरंगजेब सत्तामद में चूर शासक था, जो हिन्दू बहुमत का अपमान कर क्रूर इस्लामी राज चला रहा था। कैसा पारिवारिक आदर्श था उस शासक का ? पिता को जेल में कैद कर दिया। कंस की भांति। अपने तीन सगे भाईयों का कत्ल कर दिया ताकि सिंहासन वह कब्जिया ले। अयोध्या में कहां तीसरे भाई भरत ने चौदह साल खड़ाऊ लेकर जंगल में झोपड़ी में वक्त काट दिया। राजपाट छोड़ दिया। कहा शाहजहां का तीसरा बेटा औरंगजेब ने बड़े भाई को हाथी के पैरों तले कुचलवाया। कटा सर नाश्ते की तश्तरी में वृद्ध बंदी बाप को भेजा। कैसा तुलनात्मक माजरा है ?
क्या कोई भी आत्मगौरव वाला भारतीय इस कट्टर सुन्नी बादशाह का नाम लेना भी गवारा करेगा ? न्यायप्रिय राष्ट्रों में तो कतई नहीं। बहुमतावलम्बियों पर जजिया लगाना। उनके आस्थास्थलों को तोड़ना, पूजनीय मूर्तियों को मस्जिद की सीढ़ी पर जड़ना, काशी विश्वनाथ और मथुरा के कृष्ण जन्मस्थल, काठियावाड का सोमनाथ आदि पर हमला करना। वाराणसी, थट्टा और मुलतान में पाठशालाओं को बंद करना, तलवार के बल पर कलमा पढ़वाना। हिन्दुओं द्वारा पालकी, घोड़े और हाथी की सवारी पर पाबंदी। होली, दिवाली के मनाने पर मनाही। यमुना, सरस्वती, गंगा तट पर शवदहन बंद करवाना। सिख गुरूओं के सरों को जमीन में गड़वाना। राजपूत, जाट, सतनामी, मराठों का संहार। सबसे क्रूरतम था विप्रों को गोमांस जबरन खिलाना। यह सब जघन्य कृत्य करनेवाले को कोई भी आस्थावान कभी माफ करेगा ?
औरंगजेब ने मजहब को सल्तनत के ऊपर थोपा। तो क्या काशी का जिला कोर्ट जब ऐसे ऐतिहासिक अपराधी के पक्ष में दिया गया कोई प्रमाण स्वीकारने में बाध्य है? औरंगजेब खुदा का बंदा नहीं। शैतान की प्रतिमूर्ति था। उसे मिटना होगा। जैसे उसके नाम की सड़कें मिटीं हैं। अपने गौरव की रक्षा का मसला है राष्ट्र के समक्ष।

K Vikram Rao
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