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भारत में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिलेगी?

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Place: Bhopal                                                👤By: prativad                                                                Views: 2516

देशभर की अदालतों में समलैंगिक विवाह से जुड़ी सभी लंबित याचिकाओं की सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट में होगी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को विभिन्न उच्च न्यायालयों से समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिलाने वाली याचिकाओं को अपने पास स्थानांतरित कर लिया है। यह मामला मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था। पीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस भेजते हुए 15 फरवरी तक जवाब भी मांगा है। अब इस मामले की सुनवाई 13 मार्च को होगी।
आज किस याचिका पर सुनवाई हुई?
सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी देने से जुड़ी दो याचिकाएं दायर हुईं थीं। इसके अलावा अलग-अलग हाईकोर्ट में भी इससे संबंधित याचिकाएं दायर हैं। आज सुप्रीम कोर्ट में जिन दो याचिका पर सुनवाई हुई, उनमें से एक पश्चिम बंगाल के सुप्रियो चक्रवर्ती और दिल्ली के अभय डांग ने दायर की है। वे दोनों लगभग 10 साल से एक साथ रह रहे हैं और दिसंबर 2021 में हैदराबाद में शादी कर चुके हैं। अब दोनों इस शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मान्यता देने की मांग कर रहे हैं।

दूसरी याचिका पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और उदय राज की है, जो 17 साल से साथ रह रहे हैं। पार्थ और उदय का कहना है कि वो दो बच्चों की देखभाल भी कर रहे हैं, लेकिन कानूनी तौर पर दोनों उनके अभिभावक नहीं बन पा रहे हैं। क्योंकि भारत का कानून इसकी मंजूरी नहीं देता है। इन्हीं याचिकाओं की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने देश के अलग-अलग हाईकोर्ट में इससे जुड़ी अन्य याचिकाओं को भी ट्रांसफर करने का आदेश दे दिया। अब सभी याचिकाओं पर एकसाथ सुनवाई होगी।

क्या भारत में भी समलैंगिक विवाह को मंजूरी मिल सकती है?
इसे समझने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता चंद्र प्रकाश पांडेय से बात की। उन्होंने कहा, 'छह सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाले 158 साल पुराने कानून को रद्द कर दिया था। मौजूदा चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ उस समय कानून रद्द करने वाली बेंच में शामिल थे। इस कानून के रद्द होने के बाद समलैंगिकों के हितों की चर्चा काफी तेजी से होने लगी थी। समलैंगिक विवाह के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट का ये ऐतिहासिक फैसला एक बड़ा आधार हो सकता है।'

पांडेय के अनुसार, 'भारत में अधिकतर लोग अपने धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार ही शादियां करते हैं। अलग-अलग धर्म के मैरिज एक्ट भी हैं। मसलन हिंदू मैरिज एक्ट के तहत हिंदू, बौद्ध, सिख, लिंगायत और जैन धर्म के जोड़े आपस में शादी कर सकते हैं। मुस्लिम मैरिज एक्ट में मुसलमानों के निकाह का प्रावधान है। इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट के तहत ईसाई जोड़े शादी कर सकते हैं। स्पेशल मैरिज एक्ट में अलग-अलग धर्म के लड़के और लड़कियां शादी कर सकते हैं। इसके अलावा फॉरेन मैरिज एक्ट के तहत विदेश में रहने वाले भारतीय शादी करते हैं।'

इन कानूनों में समलैंगिक विवाह का कहीं भी कोई जिक्र नहीं है। ऐसे में समलैंगिक जोड़े शादी नहीं कर पाते हैं। अगर कर भी लेते हैं, तो उसे संवैधानिक मान्यता नहीं मिल पाती है। कानूनी तौर पर उसे वह रजिस्टर्ड नहीं करा पाते हैं।

पांडेय कहते हैं, 'सभी धर्म के मैरिज एक्ट में अलग-अलग प्रावधान हैं। ऐसे में संभव है कि अदालत इनसे अलग हटकर समलैंगिक विवाह को स्पेशल मैरिज एक्ट के जरिए ही मान्यता दे दे। हालांकि, ये सबकुछ सुप्रीम कोर्ट के विवेक पर निर्भर है। कोर्ट पहले केंद्र सरकार और इससे जुड़े सभी पक्षों की बात सुनेगा। इसके बाद ही इसपर कोई फैसला होगा।'

33 देशों में समलैंगिक विवाह को मंजूरी है
दुनिया में अभी 33 ऐसे देश हैं, जहां समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी मिली हुई है। हालांकि, ज्यादातर देशों में अदालत के फैसले के बाद ही समलैंगिकों को ये अधिकार मिला। समलैंगिक विवाह को मंजूरी देने वाला सबसे पहला देश नीदरलैंड बना। इसके अलावा ऑस्ट्रिया, ताइवान, कोलंबिया, अमेरिका, ब्राजील, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, क्यूबा, डेनमार्क, स्वीडन, दक्षिण अफ्रीका, माल्टा, फिनलैंड, ब्रिटेन जैसे देशों में भी समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी मिली हुई है।

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