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शिकागो की धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद ने अमेरिकी बहनों और भाइयों के अलावा आखिर और क्या कहा?

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Place: Bhopal                                                👤By: prativad                                                                Views: 3636

१२ जनवरी भारत के श्रेष्ठ राष्ट्रदूत स्वामी विवेकानन्द की जन्मतिथि है. हममें से बहुत लोग जानते हैं कि स्वामी विवेकानंद ने ११ सितम्बर १८९३ को शिकागो की विश्व धर्म संसद में अमेरिकी बहनों और भाइयों के सम्बोधन से हलचल मचा दी. लेकिन बहुत से लोग यह नहीं जानते हैं कि इस सम्बोधन के अलावा स्वामी विवेकानंद ने और क्या कहा?
स्वामी विवेकानंद ने कहा कि आपने जिस आत्मीयता और गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया उसके लिये मैं संसार के संन्यासियों की सर्वाधिक प्राचीन व्यवस्था की ओर से सबको धन्यवाद देता हूँ. मैं सभी वर्गों और सम्प्रदायों के करोड़ों-करोड़ हिन्दू लोगों की ओर से एवं घर्मों की जननी भारत की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ.
मुझे उस धर्म से संबंध होने में गर्व है जिसने विश्व को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकार्यता, दोनों का पाठ पढ़ाया. हम सभी धर्मों को सत्य मानकर स्वीकार करते हैं. मुझे उस राष्ट्र का निवासी होने पर गर्व है, जिसने इस पृथ्वी के सभी राष्ट्रों और धर्मों के उत्पीड़ितों एवं शरणार्थियों को शरण दी. हमें आप लोगों को यह बताने में गर्व की अनुभूति हो रही है कि हमने अपने हृदय में इजरायिलों के उन पवित्रतम अवशेषों को सहेजकर रखा है, जो ठीक उसी वर्ष दक्षिण भारत में आये थे जिस वर्ष रोमन आततायियों ने उनके पवित्र मंदिर को नष्ट कर दिया था. विवेकानंद ने कहा कि मुझे उस धर्म का अनुयायी होने पर गर्व है, जिसने भव्य पारसी राष्ट्र के निवासियों को शरण दी. बंधुओं,मैं आपके समक्ष उस प्रार्थना की पंक्तियाँ रखता हूँ जिसे मैं और करोड़ों देशवासी प्रतिदिन करते हैं. इसका सार यह है कि अलग-अलग स्थानों और स्त्रोतों निकलने वाली नदियों की विभिन्न धाराएँ जैसे अपने को समुद्र में विलीन कर देती हैं, हे ईश्वर ऐसे सभी प्रकार के लोग, सभी आपकी ओर आते हैं.
स्वामी विवेकानंद ने यह भी कहा कि यह अब तक की सबसे बड़ी धर्म सभा है. यह अपने आप में गीता के इस सिध्दान्त की स्वीकारोक्ति है कि जो भी व्यक्ति जिस रूप में मेरे पास आता है,मैं उसे प्राप्त होता हूँ, विभिन्न मार्गों पर संघर्षरत लोग अन्तत: मेरे ही पास आते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि इस श्रेष्ठ वसुंधरा को सम्प्रदाय वाद, धर्मांन्धता और उसकी भयावह संतानों और कटटरवादिता ने हिंसा से रक्तरंजित कर दिया है. सभ्यता को नष्ट किया है. यह नहीं होता तो मानव समाज आज की अपेक्षा कहीं अधिक उन्नत होता.
स्वामी विवेकानंद ने अपनी बात इस आशा के साथ समाप्त की कि अब समय आ गया है, जब सभी प्रकार की कटटरवादिता और तलवार और लेखनी के माध्यम से की जाने वाली कुटिलताओं के लिये मृत्यु का घंटा बजे.
आज की पाठकीय मनोवृत्ति को देखते हुये दिल्ली के प्रभात प्रकाशन ने स्वामी विवेकानंद के चुनिंदा २५ व्याख्यानों पर एक सुंदर पुस्तक प्रकाशित की है. इनमें विश्व धर्म संसद के तीन सम्बोधनों के अलावा भी अधिकांश विचार विदेशों में व्यक्त किये गये हैं. इनके विषय बड़े सुंदर हैं. रामायण,महाभारत,गीता के अतिरिक्त आत्मा, भारत की नारियाँ. भारत के ऋषि जैसे विषय सम्मिलित है.

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