पुरस्कार या अवमानना !

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Place: Bhopal                                                👤By: prativad                                                                Views: 6847

के. विक्रम राव
Twitter ID: @Kvikramrao

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पुरोधा बुद्धदेव भट्टाचार्य ने पद्मभूषण पारितोष अस्वीकार कर अपनी विवेकशीलता का परिचय दिया है। उधर भाजपायी नरेन्द्र मोदी ने एक कम्युनिस्ट को सम्मान देने का निर्णय कर अपने वैचारिक समभाव को दर्शाया हैं। हिन्दुवादी और मार्क्सवादी लोग समकालीन इतिहास में याद रखेंगे। लेकिन बुनियादी पहलू यह है कि यह राष्ट्रीय पुरस्कार है, जिसे प्रदान करने की लम्बी प्रक्रिया में भिन्न विभाग के लोग शामिल रहते है। अत: पश्चिम बंगाल का यह प्रगतिशील अर्थशास्त्री यदि "हां" कह देता तो पद्म पुरस्कार का सम्मान ही बढ़ जाता। कोई लोभ या उत्कोच का सवाल ही नहीं था। भारत कैसे भूल जायेगा कि दकियानूसी अर्थनीति से पश्चिम बंगाल गरीब हो गया था। वहां के युवा अन्य प्रदेशों में रोजगार तलाशते थे। टाटा को बुद्धदेव ने सिंगूर (हावड़ा) में जमीन दी। पर जानीमानी पुरोगामी और हड़बड़ाहटवाली ममता ने इस विकास योजना का मृत्युघंट बजा दिया।
उसी मौके पर गुजरात के मुख्यमंत्री (मोदी) ने सूक्ष्मबुद्धि दर्शायी। मोबाइल पर टाटा को एक लघु संदेश भेजा : "Welcome to Gujarat"। पासा पलट गया। जल की किल्लत से तंग गुजरात को औद्योगिक विकास का एक मौका और मिल गया। पश्चिम मेदनीपुर के सालेबानी में जमीन दी। इस पिछड़े गांव में केवल रिजर्व बैंक की नोट छापने की मशीन लगी थी। केन्द्रीय रिजर्व पुलिस की टुकड़ी भी है। फिर जनवादी कम्युनिस्टों के आंदोलन से टाटा की योजना खटाई में पड़ गयी। यहां जिन्दल उद्योगपति का कारखाना लग जाता तो कितनों को रोजगार मिलता।
बंगाल में बुद्धदेव सबका विकास चाहते हैं। मगर वे स्वयं कम क्रांतिकारी नहीं हैं। वियतनाम की जंगे आजादी के दौर में युवा कम्युनिस्टों के राष्ट्रीय सचिव के नाते उन्होंने अमेरिकी साम्राज्यवाद की पुरजोर खिलाफत (1968 में) की थी। उनका नारा था, "हमारा नाम वियतनाम, तुम्हारा नाम वियतनाम, हम सभी है वियतनाम।" उनके काका क्रांतिकारी बांग्ला कवि सुकान्त भट्टाचार्य से वे वैचारिक तादात्म्य संजोते थे।
ज्योति बसु के तीन दशकों के एक छत्र राज में बंगाल "भूखा बंगाल" वाली पुरानी दीन दशा पर लौट आया था। घेराओं के नतीजे में पश्चिम बंगाल कंगाल हो गया था। इन्हीं बसु ने बुद्धदेव की नन्दीग्राम घटना पर बुरी तरह भर्त्सना की थी। उनका काम तमाम तो एक अधकचरी मानसिकता वाली ममता ने कर डाला। ज्योति बसु की पार्टी को बंगाल की खाड़ी में डूबो दिया। अभी तक वह उबर नहीं पायी। अब तो दुर्दशा ऐसी है कि एक भी माकपा का विधायक नहीं जीत पाया।
विचारों और नजरियों की भिन्नता जो भी हो, भारत सरकार की आलोचना करनी ही होगी कि कितने भद्दे तरीके से पूर्व मुख्यमंत्री को पद्मभूषण का आग्रह किया गया। बुद्धदेव के पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि मंगलवार दोपहर केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने फ़ोन पर उनको पद्मभूषण पुरस्कार दिए जाने की सूचना दी थी। उसके बाद शाम को सरकार ने उनके नाम का ऐलान कर दिया। स्वयं भट्टाचार्य ने कहा कि "मैं पद्म भूषण सम्मान के बारे में कुछ नहीं जानता। मुझे किसी ने इसके बारे में नहीं बताया। अगर मुझे पद्म भूषण सम्मान दिया गया है तो मैं इसे अस्वीकार कर रहा हूं।" गृह मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी ने एजेंसी को बताया कि बीमार बुद्धदेव भट्टाचार्य के घर पर फोन किया गया था और उनकी पत्नी मीरा ने फोन रिसीव किया था। सूत्रों के मुताबिक बुद्धदेव भट्टाचार्य के परिवार से किसी ने गृह मंत्रालय को यह नहीं बताया कि वे पद्म भूषण सम्मान स्वीकार नहीं करेंगे। सूत्रों के मुताबिक मंत्रालय पद्म सम्मान दिए जाने वाले संभावित लोगों को इसकी जानकारी देता है। अगर कोई व्यक्ति इस पर आपत्ति जताता है तो उनके नाम की घोषणा नहीं की जाती है।

K Vikram Raom Rao
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