उत्तरप्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के एक प्रमुख नेता और पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के अत्यंत करीबी माने जाने वाले आजम खान ने विवादास्पद बयानों के द्वारा अपनी एक अलग ही पहिचान बनाई है। वे जब तक ऐसे बयान देते रहते हैं जिसमें उनका नाम हमेशा ही मीडिया की सुर्खियों में बना रहता है। आश्चर्य की बात यह है कि राज्य की सपा सरकार के प्रमुख मंत्री होने के बावजूद आजम खान को कभी भी अपने इन विवादित बयानों पर खेद व्यक्त करने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई और न ही पार्टी ने कभी उनके इन बयानों को आपत्तिजनक माना। तभी तो आजम खान अपने ऐसे बयानों का सिलसिला निरंतर जारी रखे हुए हैं। उत्तर प्रदेश में पार्टी के अन्दर इस समय जो खींचतान मची हुई है उससे भी आजम खान ऐसे बेफिक्र नजर आ रहे है जैसे कि उन्हें केवल अपनी अलग छवि बरकरार रखने की चिन्ता हो। यह बात अलग है कि आजम खान के ऐसे बयानों से पार्टी को राज्य के आगामी विधानसभा चुनावों में कोई राजनीतिक लाभ मिलने की संभावना नगण्य ही है। हां उनके बयान पार्टी के लिए मुश्किलें जरूर खड़ी कर सकते हैं।
मुझे लगता है कि आजम खान के पुराने विवादित बयानों की संख्या भी इतनी अधिक होगी कि उनकी पुन: यहां चर्चा करने की मुझे कोई जरूरत महसूस नहीं होती। यहां उनके एक नये बयान पर चर्चा करना उचित होगा। ऐसे समय जबकि केन्द्र की मोदी सरकार रोजना ही उच्चस्तरीय बैठकों में आतंकवाद से निपटने की कारगर रणनीति तैयार करने के लिए जी जान से हुटी हुई है तब आजम खान यह कह रहे हैं कि अगर वे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ जाएं तो सालभर के अन्दर कश्मीर की समस्या का समाधान कर देने की सामथ्र्य उनके अन्दर मौजूद है। आजम खान केवल एक राजनीतिक दल के नेता भर नहीं हैं वे एक राज्य की निर्वाचित सरकार में मंत्री पद पर भी आसीन हैं और जिस सरकार में वे मंत्री के रूप में शामिल है वही सरकार अगर राज्य के अन्दर कानून व्यवस्था को संतोषजनक ढंग से नियंत्रित नहीं कर पा रही है तो वे कैसे कहते हैं कि उनके पास कश्मीर समस्या को सालभर के अंदर हल कर देने की सामथ्र्य मौजूद है। उनकी सरकार अगर राज्य में सांप्रदायिक सदभावना कायम करने में असफल रही है तो उन्हें यह बोलने का अधिकार कतई नहीं है कि वे कश्मीर समस्या को एक साल के अन्दर हल कर देंगे।
उत्तर प्रदेश की सपा सरकार के बड़बोले मंत्री आजम खान का कहना है कि कश्मीर समस्या का सभाधान करने के लिए उन्हें प्रधानमंत्री पद की कुर्सी चाहिए परन्तु एक मुसलमान होने के कारण उन्हें यह पद नहीं मिलेगा। एक राज्य सरकार के मंत्री और विधानसभा के एक निर्वाचित सदस्य के रूप में यह बोलकर उन्होंने परोक्ष रूप से देश के संविधान पर ही सवाल उठा दिया है वे क्या यह नहीं जानते कि हमारे संविधान में भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य के रूप में परिभाषित किया गया है जहां सभी को समान अधिकार प्रदान किए गए हैं। उत्तर प्रदेश में गत चुनावों के बाद जब राज्य की जनता ने समाजवादी पार्टी के हाथों में सत्ता की बागडोर सौंपी थी तब अगर राज्य की सबसे बड़ी पार्टी के विधायक उन्हें अपना सर्वसम्मति से नेता चुन लेता तो वे तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होने का सौभाग्य भी अर्जित कर सकते थे परन्तु जब उनकी अपनी पार्टी ही उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाने के लिए तैयार नहीं हुई तो क्या इसका आशय यह था कि पार्टी ने उन्हें मुसलमान होने के कारण विधायक दल का नेता नहीं चुना था। इस प्रश्न का जवाब तो आजम खान ही नहीं बल्कि उत्तरप्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को भी देना चाहिए जो आजम खान को अपना करीबी और विश्वासपात्र मंत्री मानते है। दरअसल मुलायम सिंह यादव से अब यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि वे आजम खान को भारतीय संविधान के प्रति अनास्था व्यक्त करने वाले इस तरह के बयान के लिए खेद व्यक्त करने का निर्देश दें। दरअसल हम आजम खान से केवल इसी बयान के लिए नहीं बल्कि अब तक के उनके उन सभी विवादित बयानों के लिए खेद प्रकाश की अपेक्षा करते हैं जो एक निर्वाचित सरकार के मंत्री के रूप में उन्होंने पूर्व में दिए हैं। यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि आजम खान ने अतीत में कारगिल युद्ध में भारत की विजय पर भी ऐसा एक बयान दिया था जो साम्प्रदायिक मानसिकता का परिचायक था।
उप्र सरकार के मंत्री आजम खान शायद जान बूझकर इस सच्चाई को नजर अंदाज कर रहे है कि राष्ट्रपति पद तक पहुंचने का सौभाग्य अब तक जिन शख्सियतों ने हासिल किया है उनमें डॉ. जाकिर हुसैन, फखरूद्दील अली अहमद और डॉ. अब्दुल कलाम भी मुसलमान थे परन्तु यह सर्वोच्च पद हासिल करने में इसलिए सफल हुए क्योंकि वे देश के सर्वोच्च पद के लिए अपनी योग्यता प्रमाणित कर चुके थे। उनकी संविधान में पूरी आस्था थी। आजम खान शायद यह भी जानबूझकर भूल जाना चाहते हैं कि इस देश में अल्पसंख्यक समुदाय की जो भी प्रतिभाएं उच्च पदों पर पहुंची उन्होंने कभी भी इस तरह के विचारों को पोषित नहीं किया जिन्हें आजम खान अपनी विशिष्ट पूंजी के रूप में सहेजकर रखने में गर्व महसूस करते हैं।
सपा सरकार के बड़बोले मंत्री आजम खान ने यह गर्वोक्ति भी कि है कि वे एक ईमानदार नेता है और पर्याप्त शैक्षणिक योग्यता भी उनके पास है यही नहीं वे यह दावा भी करते है कि प्रधानमंत्री बनने के सारे गुण उनके पास मौजूद हैं। मैं उनकी इस गर्वोंक्ति पर समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायसिंह यादव से एक सवाल करना चाहता हूं कि उन्होंने 2014 में वाराणसी क्षेत्र से उन्हें अपना प्रत्याशी क्यों नहीं बनाया जबकि उस लोकसभा क्षेत्र से वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी ने भावी प्रधानमंत्री के रूप में चुनाव मैदान में उतारा था। समाजवादी पार्टी तो उन लोकसभा चुनावों में राज्य की 80 में से केवल सात सीटें ही जीत पाई थी। अगर आजम खान को 2014 में समाजवादी पार्टी वाराणसी में नरेन्द्र मोदी के विरूद्ध उम्मीदवार बना देती तो आज आजम खान यह गर्वोक्ति करने की स्थिति में हीं नहीं होते कि प्रधानमंत्री बनने की सारी योग्यताएं उनके पास हैं।
मैं इस लेख के माध्यम से अपना केवल यही सुझाव आजम खान तक पहुंचाना चाहता हूं कि अगर सचमुच में उनके जेहन में कश्मीर समस्या का कोई कारगर हल मौजूद है तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलकर उनहें अवश्य बताएं। कश्मीर समस्या की गंभीरता को देखते हुए आजम खान को देश के एक जिम्मेदार नागरिक एवं एक राज्य सरकार के जिम्मेदार मंत्री के रूप में खुद आगे होकर इस दिशा में पहल करनी चाहिए।
- कृष्णमोहन झा
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)
आजम खान पहले अपने प्रदेश पर ध्यान दें
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भोपाल 👤By: वेब डेस्क Views: 17426
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