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भोपाल गैस पीड़ितों को बड़ा झटका, अतिरिक्त मुआवजे के लिए केंद्र की याचिका खारिज

Place: Bhopal                                                👤By: prativad                                                                Views: 578

14 मार्च 2023। भोपाल गैस त्रासदी मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से गैस पीड़ितों को बड़ा झटका लगा। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार की अतिरिक्त मुआवज़े की मांग को लेकर दायर क्यूरेटिव याचिका को खारिज कर दिया है।

केंद्र सरकार ने डाउ केमिकल से अतिरिक्त मुआवजे की मांग को लेकर क्यूरेटिव याचिका लगाई थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को फैसला सुना दिया। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की याचिका खारिज करते हुए कहा कि कहा है कि गैस पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवजे की मांग पूरी नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की क्यूरेटिव याचिका पर दखल देने से इंकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि केंद्र को इस मामले में पहले आना चाहिए था, ना कि तीन दशक बाद। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार भारतीय रिज़र्व बैंक के पास मौजूद 50 करोड़ रुपए का उपयोग लंबित दावों को मुआवजा देने के लिए करे। समझौते को सिर्फ फ्रॉड के आधार पर रद्द किया जा सकता है। वहीं, केंद्र सरकार की तरफ से समझौते में फ्रॉड को लेकर कोई दलील नहीं दी गई।

7844 करोड़ अधिक राशि मांगी थी : बता दें कि साल 1984 में 2 और 3 दिसंबर की दरमियानी रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड (अब डाउ केमिकल्स है) से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था। जिससे हजारों लोग काल के गाल में समा गए थे। इसके बाद डाउ केमिकल और तत्कालीन सरकार के बीच हुए समझौते के चलते इन पीड़ितों को मुआवजे की राशि वितरित की गई थी। लेकिन साल 2010 में केंद्र सरकार की ओर से एक याचिका लगाई गई, जिसमें अतिरिक्त मुआवजे की मांग की गई थी। वहीं 2022 में केंद्र की मोदी सरकार की ओर से क्यूरेटिव याचिका लगाई गई थी, जिसमें 7844 करोड़ से अधिक की राशि डाउ केमिकल से अतिरिक्त मुआवजे के रूप में मांगी गई थी।

12 जनवरी को फैसला सुरक्षित रखा था : अतिरिक्त मुआवजे के पीछे का तर्क आईसीएमआर और कार्नेगी मेलॉन यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट को रखा गया। इसको लेकर 12 जनवरी को जजों की खंडपीठ ने फैसला सुरक्षित रखा था। डाउ केमिकल की ओर से हरीश साल्वे ने पैरवी की थी। जबकि पीड़ित पक्षों की ओर से करुणा नंदी ने दलीलें पेश की। दलीलों में हरीश साल्वे ने साफ कहा कि इस मामले में यूएस कोर्ट पहले ही पूरे मामले को खारिज कर चुकी है। ऐसे में 1989 में जो समझौता हुआ था, उसके अलावा अतिरिक्त मुआवजे का सवाल ही नहीं उठता। इधर, गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाली रचना ढींगरा का कहना है कि इस मामले में सरकार की और से वकीलों ने अपनी दलीलें सही तरह से पेश नहीं की। अगर दलीलें सही तरह से पेश की जाती तो निश्चित ही अतिरिक्त मुआवजा मिलता।

5 जजों की पीठ का फैसला: भोपाल के गैस पीड़ितों को अतिक्त मुआवजे के मसले पर केंद्र सरकार को तगड़ा झटका तो मिला ही साथ ही जजों की पीठ ने कमेंट भी किया। पीठ ने कहा कि 3 दशक पहले यह मुद्दा उठना चाहिए था ना कि अब। साथ ही इसके लिए कोई तर्क भी सरकार के पास नहीं है जो कोर्ट में पेश किया गया हो। देश की सरकार के पक्ष से हम कतई भी संतुष्ट नहीं हैं। इसके साथ ही जजों की पीठ ने यह भी कहा कि वो मानते हैं कि सुधारात्मक याचिकाओं पर इससे ज्यादा और विचार करने का सवाल ही नहीं है। जाहिर है यूनियन कार्बाइड जिसे डाउ केमिकल्स (Dow Chemicals) ने अधिग्रहित कर लिया था उसके लिए यह फैसला राहत से भरा है।
5 जजों की पीठ में कौन कौन से जज थे: भोपाल गैस पीड़ितों के लिए एडिशनल फंड या कंपन्सेशन मामले की सुनवाई जो पीठ कर रही थी उसमें न्यायाधीश SK कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, न्यायाधीश SK ओका, न्यायाधीश जेके महेश्वरी और जस्टिस विक्रम नाथ शामिल थे।

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