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जलवायु परिवर्तन को समझाने मध्यप्रदेश ने चलाया चेतना कार्यक्रम

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Place: भोपाल                                                👤By: वेब डेस्क                                                                Views: 18741



सितम्बर 26, 2016 जलवायु परिवर्तन किसी देश विशेष नहीं, पूरे विश्व की चिंता का विषय बन गया है। जन-सामान्य मुख्यत: बच्चों को जलवायु परिवर्तन, दुष्परिणाम, बचाव के उपाय आदि से अवगत करवाने के लिये मध्यप्रदेश के एप्को ने जलवायु परिवर्तन चेतना कार्यक्रम के माध्यम से एक सार्थक पहल की है। इस पहल के जरिये राज्य के 500 विद्यालय के शिक्षकों को 'जलवायु परिवर्तन लीडर' के तौर पर प्रशिक्षित कर बच्चों के लिये सामग्री और कार्यक्रम दिया जा रहा है। आइये हम भी जानें यह जलवायु परिवर्तन है क्या?



जलवायु परिवर्तन



वैश्विक स्तर पर जलवायु में होने वाले परिवर्तन को जलवायु परिवर्तन के रूप में जाना जाता है। इसका मुख्य कारण सामान्यत: ग्लोबल वार्मिंग को माना जाता है। बड़ी और भीषण मौसम की घटनाएँ- बढ़ता तापमान, ज्यादा तूफान, कम समय अंतराल के लिये भारी वर्षा, ज्यादा सूखा, वर्षा ऋतु का घटना, लम्बा शुष्क मौसम आदि परिवर्तन देखे जा रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग ग्रीन हाउस गैसों से जुड़ा हुआ है।



ग्रीन हाउस गैसें



वायु मण्डल में ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा एक प्रतिशत होती है, जो बेहद अनुकूल है। इसमें उपयोगी जल वाष्प, कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रस आक्साइड, मीथेन तथा ओजोन प्राकृतिक ग्रीन हाउस प्रभाव बनाते हैं। अन्य मुख्य गैसें हैं- क्लोरो फ्लोरोकार्बन (CFC), हाइड्रो फ्लोरोकॉर्बन (HFC5) गैसें, परफ्लोरोकॉर्बन (PFC5) और सल्फर हेक्साफ्लुओराइड (SF6)। मानवीय गतिविधियों ने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को काफी बढ़ा दिया है, जिससे ग्रीन हाउस प्रभाव में वृद्धि हो रही है।



ग्रीन हाउस प्रभाव



ट्रोपोस्फीयर से ग्रीन हाउस गैसें सूर्य की किरणों को पार तो जाने देती हैं पर उसकी ऊष्मा को ग्रीन हाउस के पैन के समान रोक लेती हैं। यह अवशोषित ऊष्मा विकिरण द्वारा वापस पृथ्वी की सतह पर चली जाती है और ट्रोपोस्फीयर को और गरम बनाती है।



एक ग्रीन हाउस शीशे या प्लास्टिक का बना होता है। इनसे होकर गुजरने वाली सूर्य की किरणें ग्रीन हाउस से निकल नहीं पाती हैं, जिससे ग्रीन हाउस के अंदर का तापमान बढ़ जाता है।



ग्लोबल वार्मिंग



वैश्विक स्तर पर ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा के बढ़ने के कारण पृथ्वी के तापमान में होने वाली वृद्धि को ग्लोबल वार्मिंग के नाम से जाना जाता है। ग्लोबल वार्मिंग या वैश्विक तापमान के बढ़ने के कारण मौसम और जलवायु में भी परिवर्तन यह दर्शाता है कि तापमान बढ़ने के अलावा भी कई अन्य परिवर्तन हो रहे हैं।



ग्रीन हाउस गैसों का स्रोत



कार्बन डाईऑक्साइड (Co2) कोयले, तेल तथा प्राकृतिक गैस, जैव पदार्थ को जलाने तथा निर्वनीकरण के कारण उत्सर्जित होती है। मीथेन (CH4), प्राकृतिक गैस के रिसाव तथा धान के खेतों, प्राकृतिक जल-भूमि क्षेत्रों, भू-भराव क्षेत्रों, दीमक, मवेशियों, भेड़ तथा की आँतों से और कार्बनिक तत्वों के सड़ने से निकलती है। नायलॉन उत्पादन के दौरान जैव-पदार्थ और जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला को जलाने पर नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) निकलती है।



ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि



औद्योगीकरण से पहले के समय की तुलना में वायु मण्डल में CO2, CH4 तथा N2O की मात्रा 142 प्रतिशत, 253 प्रतिशत तथा 121 प्रतिशत तक बढ़ गयी है। वर्ष 1750 की तुलना में CO2 की मात्रा 280 पार्ट्स पर मिलियन की मात्रा से बढ़कर वर्ष 2010 में 300 पी.पी.एम. हो गयी। इसी दौरान मीथेन की मात्रा 700 पी.पी.बी. से बढ़कर 1106 पी.पी.बी. हो गयी है। इसी समय में N2O की मात्रा 269 पी.पी.बी. से बढ़कर 223.2 पी.पी.बी. हो गयी।



बढ़ती गर्मी



वर्ष 1880 से 2012 के बीच औसतन वैश्विक तापमान 0.85 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा है। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि प्रत्येक 1 डिग्री तापमान के बढ़ने से अनाज के उत्पादन में 5 प्रतिशत की कमी आ सकती है। वर्ष 1981 से 2002 के बीच गरम जलवायु के कारण वैश्विक स्तर पर मक्का, गेहूँ तथा अन्य मुख्य फसलों के उत्पादन में 40 मेगा टन सालाना की दर से कमी आयी है।



विश्व में बढ़ती गर्मी



तापमान में होने वाला हल्का सा बदलाव भी बड़े प्रभाव ला सकता है। जलवायु परिवर्तन कई और अवांछित बदलाव लायेगा। पृथ्वी पर जीवन के हर पहलू पर इसका प्रभाव परोक्ष या अपरोक्ष रूप में पड़ेगा। ग्लोबल वार्मिंग का केवल यह अर्थ नहीं है कि हवा गरम हो जायेगी। इससे जुड़े हुए बहुत से प्रभाव हो सकते हैं। जैसे मौसम की भीषण घटनाएँ, समुद्र स्तर का बढ़ना, कृषि उत्पादन में कमी, जैव-विविधता एवं पारिस्थितिक तंत्र का ह्रास तथा मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव।



बदलाव बनें



हमारी जीवन शैली जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हुई है। यह जो हम कपड़े पहनते हैं, जो खाना खाते हैं, जिस तरह हम यात्रा करते हैं तथा हमारे द्वारा ली जाने वाली सुख-सुविधाएँ, इन सबसे ग्रीन हाउस गैसें उत्सर्जित होती हैं। जितना ज्यादा हम उपभोग करते हैं, उतना ही ज्यादा हम जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देते हैं। हमारी कुछ बातों, कुछ चयनों तथा आदतों को बदलकर हम ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को घटा सकते हैं।

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