×

भारत के चौतरफा दबाव से पस्त हुआ पाकिस्तान

prativad news photo, top news photo, प्रतिवाद
Place: भोपाल                                                👤By: Digital Desk                                                                Views: 17606



कृष्णमोहन झा

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)

उड़ी में हुए आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान ने जिस तरह रूख अपनाया उसके बाद से भारत ने उस पर आतंकवाद को प्रश्रय देने के लिए कोई कदम नहीं उठाने पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था। भारत ने विश्व बिरादरी तक अपनी बात पहुंंचाई। इसके बाद भी हर बार की तरह पाकिस्तान झूठ बोलने से नहीं चूका। उड़ी हमले के बाद भारत ने अपनी तरह की पहली कार्रवाई में बुधवार देर रात नियंत्रण रेखा के पार स्थित आतंकी ठिकानों पर निशाना साधकर सर्जिकल हमले किए भारत में घुसपैठ की तैयारी कर रहे आतंकवादियों को भारी नुकसान पहुंचाया। कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चेतावनी दी थी कि उड़ी हमले के लिए जिम्मेदार लोगों को बिना सजा नहीं छोड़ा जाएगा। पाकिस्तान ने हालांकि भारत के दावे को 'मनगढ़ंत' करार दिया तथा कहा कि सीमा पार से की गई गोलीबारी को लक्षित हमले बताना भारत द्वारा मीडिया में सनसनी पैदा करने का प्रयास है। पाकिस्तानी सेना ने इस्लामाबाद में एक बयान में कहा, 'भारत ने कोई लक्षित हमला नहीं किया है, इसकी जगह भारत की ओर से सीमा पार से गोलीबारी की गई जो अक्सर होता रहता है।'



प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पिछले सवा दो वर्षों के कार्यकाल में विपक्ष ने उनकी कश्मीर नीति पर कई बार सवाल उठाए हैं और उनकी उस पाकिस्तान यात्रा को लेकर भी विपक्ष ने उनकी आलोचना करने में कोई कोताही नहीं बरती थी जो प्रधानमंत्री मोदी ने पड़ोसी देश के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को जन्म दिवस की बधाई देने और उनकी नातिन को विवाह पर शुभाशीष देने के लिए की थी। हाल में ही जब जम्मू कश्मीर के उड़ी क्षेत्र में स्थित आर्मी हेड क्वार्टर पर आतंकी हमले में हमारे 19 जवान शहीद हुए तब तो प्रधानमंत्री मोदी को विपक्ष ने तीखी व्यंगोक्तियों का निशाना बनाने में तनिक भी देर नहीं की। निश्चित रूप से विपक्षी कांग्रेस पार्टी के इन व्यंग्य बाणों ने प्रधानमंत्री को अंदर तक आहत किया होगा। परन्तु विपक्ष शायद जानबूझकर इस हकीकत से मुंह मोड़ लेना चाहता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने उड़ी हमले के बाद पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए जिन कठोर विकल्पों पर अपने सहयोगियों से विचार विमर्श प्रारंभ किया है उन कठोर विकल्पों पर विचार करने की आवश्यकता पिछली संप्रग सरकारों ने कभी नहीं की। या फिर वे पड़ोसी देश के प्रति इतने कदम उठाने से झिझकती रहीं। केन्द्र में कोंग्रेस नीत संप्रग सरकार के दो कार्यकालों के दौरान पाकिस्तान ने कई बार ऐसी गुस्ताखियां की जो उसके प्रति कठोर रवैया अपनाने का औचित्य सिद्ध करने के लिए पर्याप्त आधार जुटा सकती थीं परन्तु वे सरकार केवल पड़ोसी धर्म निभाने में ही भरोसा करती रहीं। केन्द्र में मोदी सरकार के गठन के बाद निसंदेह पाकिस्तान ने कभी भी हमारी सदाशयता का उत्तर सदाशयता से नहीं दिया परन्तु फिर हमने उसे रास्ते पर लाने के लिए कई प्रयास किए। हो सकता है कि पड़ोसी देश ने यह मान लिया हो कि वह अपनी गुस्ताखियों को पहले के समान ही जारी रखेगा और भारत की नई सरकार भी उसके प्रति पहले जैसी नरमी ही बरतती रहेगी। ऐसा नहीं कि मोदी सरकार ने भी पाकिस्तान की नीयत का अंदाजा लगाने में थोड़ी देर कर दी हो परंतु उड़ी स्थित आर्मी हेडक्वार्टर पर आतंकी हमले के बाद केन्द्र सरकार ने पाकिस्तान को माकूल जवाब देने के लिए जिन कठोर कदमों पर विचार करना शुरू कर दिया है उनसे निश्चित रूप से वह बौखला उठा है और खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे वाली कहावत को सही सिद्ध करने में जुट गया है।



उड़ी हमले के बाद मोदी सरकार ने कोई एक कदम उठाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं समझा बल्कि अनेक कठोर कदमों के द्वारा उसे चौरफा घेरने की रणनीति की तैयारियां प्रारंभ कर दी हैं। जम्मू कश्मीर के अशांत क्षेत्रों में हिंसक तत्वों के प्रति सख्ती से निपटने के लिए सेना को और अधिकार प्रदान किए गए है तो उड़ी में सैनिक शिविर आतंकी हमले में पाकिस्तान का हाथ होने के पुख्ता सबूत भी पाकिस्तानी उच्चायुक्त को सोंपे गए हैं। जिन्हें नकारना पाकिस्तान के लिए संभव नहीं है। इसलिए वह बेशर्मी पूर्वक यह बयान दे रहा है कि यह हमला भारत का ही एक ड्रामा है जिसके द्वारा वह पाकिस्तान को बदनाम करना चाहता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के ऐसे बयानों को कतई विश्वसनीय नहीं माना जा रहा है और विश्व बिरादरी यह भली भांति समझ चुकी है पाकिस्तान ही वह देश है जो आतंकियों को बाकायदा शिविर लगार प्रतिशिक्षत करता है जिनको बाद में जम्मू कश्मीर में घुसपैठ कराकर वहां हिंसा फैलाने के निर्देश दिए जाते है। यह खुलासा वहां पकड़े गए घुसपैठियों ने स्वयं किया है और यह भी बताया है कि भारत की सख्त कार्रवाई के बाद अब अनेक आतंकी प्रशिक्षण केंद्रों से भगदड़ की स्थिति बन चुकी है।



पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करने के लिए जो झुठ का पुलिंदा लेकर गए थे उसकी भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने जिस तरह धज्जियां उड़ाई उससे महासभा के बहु संख्य सदस्य राष्ट्रों को यह भरोसा हो गया कि पाकिस्तान ही आतंकवाद की सबसे बड़ी फैक्ट्री है। सुषमा स्वराज का भाषण अत्यंत प्रभावशाली था और वे अपने तर्कों से सदस्य राष्ट्रों के प्रतिनिधियों को सहमत करने में सफल हुई। दूसरी ओर नवाज शरीफ का भाषण सुनकर यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं था कि अपने देश के गुनाहों पर पर्दा डालने के लिए झुठे और मनगढ़ंत तर्कों का सहारा लेने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है। भारत ने विश्व संस्था में पाकिस्तान को बेनकाब करने के बाद और कई ऐसे कदमों पर गंभीरता से विचार करना शुरू कर दिया है जो पाकिस्तान पर दबाव बनाने में सफल हो सकते है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इस्लाबाद में होने वाली सार्क बैठक में भाग लेने इंकार देने से पाकिस्तान भौंचक्का रह गया है। गौरतलब है अफगानिस्तान, भूटान और बंगलादेश पहले इस बैठक में भाग लेने से इंकार कर चुके है।



जब जम्मू कश्मीर के उड़ी क्षेत्र में स्थित आर्मी हेडक्वार्टर पर पाकिस्तान से आए आतंकियों ने हमला किया था तो आतंकी हमले की इस घटना की लगभग समूचे विश्व समुदाय ने निन्दा की थी यद्यपि हमारा पड़ोसी देश चीन पाकिस्तान की भत्र्सना करने से कतराता रहा। जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों की सरकारों ने यहां तक कहा कि भारत को अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करते हुए पाकिस्तान की सीमा में घुसकर वहां चले आतंकी प्रशिक्षण केन्द्रों को ध्वस्त करने का भी अधिकार है। अमेरिका ने भी पाकिस्तान को यह चेतावनी दी कि वह आतंकवादियों को प्रश्रय देना बंद करे। अमेरिका यदि पाकिस्तान को ऐसी कोई चेतावनी दे तो निश्चित रूप से उसके विशेष मायने होते है क्योंकि पाकिस्तान को अमेरिका से ही सर्वाधिक आर्थिक सहायता प्राप्त होती है। उड़ी पर आतंकी हमले की घटना के बाद अमेरिका ने इस बार पाकिस्तान को चेतावनी देने के लिए जिस शब्दावली का प्रयोग किया वह पहले से कही कठोर थी। परंतु क्या वह शब्दावली सचमुच इतनी कठोर थी कि पाकिस्तान दहल उठता। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि अगर अमेरिका सचमुच ही यह मानता है कि पाकिस्तान विश्व में आतंकवाद की सबसे बड़ी फैक्ट्री बन गया है तो उसे पाकिस्तान के प्रति और अधिक कठोर होना पड़ेगा। पाकिस्तान अभी भी अमेरिकी सहायता पा रहा है और भविष्य में भी पाता रहेगा क्योंकि अमेरिका खुद ही दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन के नाम पर उसे भरपूर आर्थिक सहायता उपलब्ध कराता रहा है। पाकिस्तान को दरअसल अमेरिका की ओर से यह भय होना चाहिए कि अगर वह आतंकवाद को प्रश्रय देना बन्द नहीं करेगा तो उसे अमेरिकी सहायता मिलना बंद हो जाएगी। पाकिस्तान इस तरह के भय का शिकार कभी नहीं हुआ। अमेरिका ने यद्यपि पाकिस्तान की सीमा में घुसकर खुंखार आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को मार डाला था। परंतु अमेरिका क्या कभी यह पसंद कर सकता है कि भारत भी पाकिस्तान की सीमा में घुसकर वहां चल रहे आतंकी कैंपों को नष्ट कर दे। निश्चित रूप से हमें अब दुनिया के बड़े देशों के माध्यम से पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक प्रयासों को तेज करने की जरूरत है। हमारे एक बड़े पड़ोसी देश चीन ने तो पहले ही खुलकर उसका साथ देने की घोषण कर दी है जबकि एक और बड़ा पड़ोसी देश रूस का पाकिस्तान के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास करने का फैसला यह संकेत देता है कि आने वाले समय में रूस पाकिस्तान के साथ अपनी नजदीकियां स्थापित करने से गुरेज नहीं करेगा। जो रूस कभी भारत का सबसे निकटतम मित्र राष्ट्र हुआ करता था उसकी पाकिस्तान के साथ नजदीकियां बढऩे को हम सहज रूप में नहीं ले सकते।



पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करने के लिए हमें बाकायदा मुहिम चलानी होगी और हम इस मुहिम में निकट भविष्य में सफलता के प्रति पूर्ण आश्वस्त भी नहीं हो सकते। इसलिए केन्द्र सरकार ने पाकिस्तान से विशेष तरजीह वाले देश का दर्जा वापिस लेने पर भी विचार प्रारंभ किया है और सिंधु जल समझौते की समीक्षा जैसे कदम भी उठाने के लिए केन्द्र सरकार तैयार है। पाकिस्तान से विशेष तरजीह देश का दर्जा वापिस लेना तो हमारे हाथ में है परंतु सिंधु जल समझौता को एक झटके में रद्द कर देना संभव नहीं है। पाकिस्तान ने धमकी दी है कि भारत इस मामले को अंतराष्ट्रीय अदालत में चुनौती देगा। पाकिस्तान की धमकियों की तो हमें परवाह करने की कोई आवश्यकता नहीं है परंतु यह एक ऐसा कदम होगा जिसके लिए हमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन जुटाना होगा। निश्चित रूप से इस समझौते को रद्द करने से पाकिस्तान की दो तिहाई आबादी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती है जिसकी आशंका के दवाब में आकर वह अपनी गुस्ताखियों पर विराम लगाने के लिए विवश हो सकता है। अगर हम यह दबाव बनाने में सफल हो जाए तो यह हमारी एक बड़ी सफलता होगी।

Related News

Global News