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शोध में सिद्धांतों की समझ आवश्यक - प्रो. आशा शुक्ला

Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 383

शोध इथिक्स को गंभीरता से समझने की जरूरत- प्रो. पी.एन. मिश्रा
24 जुलाई 2023। किसी भी समाज के समग्र विकास में सामूहिक प्रयासों की बड़ी भूमिका होती है। वर्तमान संदर्भों में देखें तो सामाजिक, राजनीतिक एवं अकादमिक रूप से समृद्ध होते भारत की स्वीकार्यता पूरी दुनिया कर रही है। विश्वशांति और सद्भाव की जो आध्यात्मिक जमीन भारत के मनीषियों ने तैयार की है, उसका अनुशरण पूरी दुनिया में होता दिख रहा है। स्व. गुलाबबाई यादव स्मृति महाविद्यालय, आशा पारस फॉर पीस एंड हारमनी फाउंडेशन तथा वेद फाउंडेशन द्वारा शैक्षिक एवं अनुसंधानपरक गतिविधियों के जरिये अकादमिक उन्नयन के प्रयास के अंतर्गत यह सात दिवसीय शार्ट टर्म रिसर्च प्रोग्राम आयोजित की गयी। सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय दृष्टि से उत्कृष्ट शोध कार्यों के लिए उन सूत्रों को जानना बेहद आवश्यक है, जिनसे सत्य के अधिक करीब पहुंचा जा सके। उक्त बातें प्रो. आशा शुक्ला पूर्व कुलपति, डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय ने सात दिवसीय शार्ट टर्म प्रोग्राम के समापन अवसर पर अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कही।
प्रो. शुक्ला ने कहा शोध में सिद्धांतों की समझ बेहद आवश्यक है। महिला अध्ययन जैसे विषयों में शोध की प्रासंगिकता के साथ साथ इसके अंतरानुशासनिक पहलुओं को भी आत्मसात करने की जरूरत है। मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रो. पी. एन. मिश्रा, पूर्व अध्यक्ष देवी अहिल्या विश्वविद्यालय ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा की जिस विरासत को हमारे गुरुओं ने आगे बढ़ाया है वह अविस्मरणीय है। आज अकादमिक जगत में कुछ ऐसी चुनौतियाँ व्याप्त हो रही है जिससे शोध का क्षेत्र प्रभावित हो रहा है। शोध इथिक्स को बहुत गंभीरता से समझना और उसका अनुपालन करना होगा। उन्होंने कहा कि सामाजिक शोध महज डिग्री और प्रकाशन भर के लक्ष्य को लेकर किया जाना सार्थक नहीं बल्कि यह मानवता के लिए किया जाने वाला सार्थक प्रयास है। आज के युवाओं को इस बात को बहुत बारीकी से समझना होगा। प्रो. जय गोपाल शर्मा, दिल्ली टेक्नोलोजिकल विश्वविद्यालय, नई दिल्ली ने अपने विशिष्ट वक्ता उद्बोधन में बताया कि आज दुनिया जिन शोध की गुत्थियों को सुलझा रही है वह हमारे पूर्वजों ने वर्षों पहले अपने ज्ञान और अनुसंधान कौशल क्षमता से निष्पादित कर गए हैं। आज हमें उन ज्ञान परम्पराओं की सैद्धांतिकता को न सिर्फ महिमामंडित करने की जरूरत है बल्कि उनसे सीखने और उसे लागू करने की जरूरत है। वर्तमान में सामाजिक विज्ञान में अनुसंधान का जो ट्रेंड चल रहा है उसमें भारतीय तत्व ज्ञान की समझ वाली दृष्टि यदि हम विकसित कर पा रहे हैं तभी असल मायने में हम ऐसी कार्यशालाओं की सार्थकता सिद्ध कर सकते हैं। डॉ. राकेश कुमार दुबे, मीडिया रिसर्च प्रोफेशनल्स नई दिल्ली ने कहा कि सामाजिक शोध की पद्धतियों एवं प्रविधियों का पुनरावलोकन करने की आवश्यकता है। गलत प्रविधियों के चुनाव के कारण ही परिणाम यथास्थिति से अलग दिखाई देते हैं। भारतीय पद्धतियों पर नए संदर्भों में विचार करने की आवश्यकता है। स्वागत उद्बोधन देते हुए प्रो. आर. के. शुक्ला, पूर्व विभागाध्यक्ष पंडित सुंदरलाल शर्मा सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ इंस्टीट्यूट ऑफ वोकेशनल एडुकेशन एन. सी. आर. टी. ने कहा कि यह शार्ट टर्म प्रोग्राम शोध के तकनीकी आयामों पर आधारित रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों से जुड़े प्रतिभागियों और विद्वानों के मध्य सामाजिक शोध का यह आयोजन शोध की एक नई दिशा प्रदान करने वाला रहा है। डॉ. रामशंकर चीफ एडिटर एशियन थिंकर, ने विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की। समापन के इस अवसर डॉ. भरत भाटी, सह प्राध्यापक सेज विश्वविद्यालय इंदौर, डॉ. अमरजीत सिंह प्राचार्य संकल्प इंस्टीट्यूट ऑफ एडुकेशन नोयडा तथा डॉ. वंदना गुप्ता, सिद्धार्थ विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश ने अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. मनोज कुमार गुप्ता तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अजय दुबे द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संयोजन लव कुमार चावड़ीकर, प्रबन्धक ने किया।




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