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केंद्र का भिखारियों के प्रति व्‍यक्‍त होता सम्‍मान : डॉ. मयंक चतुर्वेदी

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Place: भोपाल                                                👤By: वेब डेस्क                                                                Views: 17734

केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार आए भले ही 2 वर्ष से अधिक हो गए हैं, किंतु अब तक के इस सरकार के लिए गए निर्णय देश में तंग हाल जीवन जी रही जनता के बीच यह संदेश नहीं दे पा रही थी कि यह वही सरकार है, जिसके लिए विकास में पीछे छूट चुके जन की चिंता सबसे ज्‍यादा मायने रखती है। भाजपा के बीज रूप जनसंघ के संगठक पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय ने जब भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था, समाज व्‍यवस्‍था और राष्‍ट्र व्‍यवस्‍था को लेकर जो भाषण दिए थे, उसी से बाद में एकात्‍म मानव दर्शन विचार प्रवाह का शंखनाद हुआ था। उस समय तत्‍कालीन जनसंघ आज के संदर्भ में जिन्‍हें भाजपायी कहा जा सकता है ने सबसे ज्‍यादा इस बात पर चिंता जताई थी कि मुख्‍यधारा से पीछे छूट चुके और विकास की दौड़ में सबसे अंतिम पायदान पर खड़े व्‍यक्‍ति को स्‍वावलम्‍बी कैसे बनाया जा सकता है।



पं. दीनदयाल उपाध्‍याय के ओर पहले यदि इस दिशा में हुए विचार प्रवाह की बात की जाए तो स्‍वामी विवेकानन्‍द अपने व्‍याख्‍यानों में कई बार इस बात को दोहरा चुके थे कि व्‍यक्‍ति को शिक्ष‍ि‍त कर दो, दान देना है तो शिक्षा का दो, उसके बाद व्‍यक्‍ति अपना कल्‍याण स्‍वयं कर लेगा। स्‍वामी जी के पहले दयानन्‍द सरस्‍वती, राजा राम मोहन राय जैसे देश में कई महान लोग हुए हैं, जिनका यही कहना था कि शिक्षा प्राप्‍त करने के बाद सत्‍य और असत्‍य, अंधकार और प्रकाश का विवेक उत्‍पन्‍न हो जाता है।



प्राचीन भारत की बात करें तो ऋग्‍वेद काल में ऋषि यास्‍क से लेकर अन्‍य ऋषि‍ परंपरा के अनुगामी हों या उपनिषद काल एवं पुराण काल तक जितने भी भारतीय धार्मिक ग्रंथ लिखे गए हों, प्राय: सभी में शिक्षा के महत्‍व पर ही बल दिया गया है। इसके बाद यह भारतवर्ष का दुर्भाग्‍य ही माना जा सकता है कि इतना सब ज्ञान का अलख जगाने के बाद भी भारत में आज भी अशिक्षा मौजूद है। भिखारियों और बेघरों की कमी यहां तक कि समाप्‍ति तक जिस अनुपात में हो जानी चाहिए थी, सरकार के लाख प्रयास और योजनाओं के क्रियान्‍वयन के बाद भी वह संभव नहीं हो पाया है।



इसे देखते हुए जो निर्णय हाल ही में केंद्र की मोदी सरकार लेने जा रही है, निश्‍चित ही उसकी सर्वत्र सराहना होनी चाहिए। वस्‍तुत: सरकार शीघ्र ही जिस विधेयक लाने जा रही है उससे भिखारियों और बेघर लोगों का पुनर्वास होना सुनिश्‍चित है। विधेयक की मदद से भीख मांगने के धंधे का अपराधीकरण रोका जाना संभव हो जाएगा। देखा जाए तो हकीकत यही है कि जो लोग बेघर हैं, भीख मांगने के लिए विवश हैं, उनमें ही सबसे ज्‍यादा शिक्षा का अभाव है। शिक्षा प्राप्‍ति के बाद जो स्‍वाभिमान आता है, ज्‍यादातर ऐसे लोग इससे शुन्‍य पाए गए हैं।



ऐसे में प्रश्‍न यही उठता है कि क्‍या उन्‍हें इसी प्रकार आगे भी उनके हाल पर छोड़ना उचित होगा ? इसके उत्‍तर में यही कहना होगा कि बिल्‍कुल नहीं । विकास की दौड़ में पीछे छूट चुके प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति की चिंता करना लोक कल्‍याणकारी राज्‍य का कर्तव्‍य है और यही धर्म भी है। मोदी सरकार आज जो करने जा रही है, वह इसी लोक कल्‍याण का एक श्रेष्‍ठ उदाहरण है। सामाजिक न्याय मंत्रालय ने 'अभावग्रस्त व्यक्ति (संरक्षा, देखभाल और पुनर्वास) मॉडल बिल, 2016' नामक जो प्ररूप तैयार किया है, उसका उद्देश्‍य ही यही है कि गरीबी में अलग-थलग जी रहे भिखारी और बेघरों को सम्मानपूर्वक जीने का मौका मिले। उन्‍हें भी भारत के संभ्रांत नागरिक होने का गौरव प्राप्‍त हो सके।



इस प्रयास के लिए मोदी मंत्रीमंडल के सदस्‍य सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलोत को भी इस कार्य के लिए धन्‍यवाद दिया जा सकता है कि उन्‍होंने और उनके विभाग ने पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय द्वारा बताए गए अंतिम व्‍यक्‍ति की सुध ली है। अब आशा यही की जा सकती है कि आने वाले दिनों में इस बिल के जरिए अभाव में जी रहे लोगों को संरक्षण, देखभाल, समर्थन, शरण, प्रशिक्षण और अन्य सेवाएं मुहैया कराने में सरकार का उठाया जा रहा यह कदम कारगर सिद्ध होगा। जिसके फलस्‍वरूप सामाजिक न्याय मंत्रालय देश में सभी अभावग्रस्त लोगों और भिखारियों का पुनर्वास करने में सफल हो सकेगा । वैसे भी भारत में भिक्षावृत्ति को बांबे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1959 के अंतर्गत अपराध करार दिया जा चुका है। आशा की जाए कि कम से कम इस विधेयक के जरिए नया कानून बन जाने के बाद भिक्षावृत्ति को खत्म करना देश में संभव हो जाएगा।

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