
15 अप्रैल 2025। दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर पर हाल ही में एक ऐसा दृश्य जीवंत हुआ, जिसने भारत के प्राचीन लोकतंत्र, न्याय और सुशासन की विरासत को फिर से केंद्र में ला दिया। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तुत "सम्राट विक्रमादित्य" पर आधारित भव्य महानाट्य ने न केवल ऐतिहासिक तथ्यों को मंच पर उतारा, बल्कि भारत के सांस्कृतिक स्वाभिमान को भी पुनर्जीवित कर दिया।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस मौके पर कहा कि सम्राट विक्रमादित्य की गाथा यह दर्शाती है कि लोकतांत्रिक मूल्यों की जड़ें भारत की मिट्टी में कितनी गहरी हैं। यह महाकाव्य नाट्य अतीत की प्रेरणाओं को वर्तमान के आईने में दिखाता है, और हमें याद दिलाता है कि इतिहास तभी सार्थक होता है, जब उससे वर्तमान और भविष्य को दिशा मिले।
सम्राट विक्रमादित्य का शासन काल न केवल वीरता और न्याय का प्रतीक था, बल्कि दानशीलता और प्रजावत्सलता जैसी मानवीय संवेदनाओं से भी भरा हुआ था। ये वही मूल्य हैं, जिनकी आज के समय में सबसे अधिक आवश्यकता है। नाटक के माध्यम से मंचित उनकी कहानियाँ आधुनिक भारत को आदर्श नेतृत्व और नीतियों की प्रेरणा देती हैं।
इतिहास से प्रेरणा लेकर वर्तमान को निखारने की कोशिश निश्चय ही सराहनीय है। "विरासत से विकास" का नारा तभी सार्थक हो सकता है, जब विकास केवल आंकड़ों में नहीं, बल्कि नागरिकों की रोज़मर्रा की जिंदगी में दिखाई दे।
सम्राट विक्रमादित्य के सुशासन की झलक दिखाने वाला यह महानाट्य सिर्फ एक सांस्कृतिक प्रस्तुति नहीं था, बल्कि यह आज के शासकों और नागरिकों दोनों के लिए एक सशक्त संदेश भी था—कि सत्ता का असली मूल्य उसकी संवेदनशीलता, पारदर्शिता और न्याय में निहित होता है। जब अतीत की प्रेरणाएं वर्तमान की चुनौतियों से टकराती हैं, तो वहां से एक नया रास्ता निकलता है—सुधार का, पुनर्निर्माण का।
मध्यप्रदेश सरकार ने जो सांस्कृतिक जागरण लाल किले से शुरू किया है, वह तब तक पूर्ण नहीं माना जा सकता जब तक वही आदर्श प्रशासनिक व्यवस्था में भी उतरें। सुशासन को सिर्फ नाट्य मंच पर नहीं, जनता की जीवनशैली में अनुभव किया जाना चाहिए। तभी इतिहास जीवंत होता है, और लोकतंत्र वास्तव में मजबूत बनता है।
सम्राट विक्रमादित्य महानाट्य का महामंचन
— Chief Minister, MP (@CMMadhyaPradesh) April 14, 2025
नई दिल्ली के लाल किला स्थित माधव दास पार्क में तीन दिवसीय भव्य प्रस्तुति का हुआ समापन
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