उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति

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Place: Bhopal                                                👤By: DD                                                                Views: 21128

उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में राष्‍ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग गठित करने के लिये बनाया गया कानून और इससे संबंधित 99वां संविधान संशोधन उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा निरस्त किये जाने के बावजूद यह अभी भी चर्चा का विषय बना हुआ है।



संसद द्वारा राष्‍ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन का प्रावधान करने संबंधी कानून और 99वें संविधान संशोधन की संवैधानिकता को न्यायमूर्ति जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अक्तूबर, 2015 में असंवैधानिक करार दिया था।



इस संविधान संशोधन को असंवैधानिक करार देने के निर्णय के समय से ही संविधान संशोधन की वैधता जैसे मुद्दों पर सुनवाई करने वाली संविधान पीठ में न्यायाधीशों की संख्या को लेकर दबे स्वर में चर्चा चल रही थी।



इसी बीच, संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान आनंद शर्मा की अध्यक्षता वाली कार्मिक, लोक शिकायत और विधि एवं न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति द्वारा पेश रिपोर्ट में राय व्यक्त की गयी है कि किसी भी संविधान संशोधन की वैधता से जुड़े मामलों की सुनवाई उच्चतम न्यायालय की कम से कम 11 सदस्यीय न्यायाधीशों की पीठ को करनी चाहिए।



संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की है कि संविधान के निर्वचन से जुड़े मामलों की सुनवाई भी उच्चतम न्यायालय के कम से कम सात न्यायाधीशों की पीठ को ही करनी चाहिए।



समिति ने रिपोर्ट में इस बात का विशेष रूप से जिक्र किया है कि 99वां संविधान संशोधन अधिनियम लोक सभा ने सर्वसम्मति से तथा राज्यसभा ने लगभग सर्वसम्मति, एक विसम्मति, वोट से पारित किया था। इस अधिनियम को उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 4:1 के आधार से खारिज कर दिया।



संविधान संशोधन और संविधान निर्वचन की वैधता से संबंधित मामले की सुनवाई करने वाली उच्चतम न्यायालय की पीठ के सदस्य न्यायाधीशों की संख्या 11 और 7 करने के संबंध में समिति ने अपने तर्क भी दिये हैं।



समिति ने रिपोर्ट में इस तथ्य को नोट किया, "संविधान के अधिनियमन के दौरान उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या केवल सात थी और संविधान के तहत संविधान के निर्वचन से जुड़े किसी मामले के विनिर्णय अथवा अनुच्छेद 143 के तहत संदर्भित मामले में न्यूनतम पांच न्यायाधीशों वाली न्यायपीठ का गठन होता था।" रिपोर्ट में आगे कहा गया है, "अब जबकि न्यायाधीशों की संख्या 31 हो गयी है तो समिति की राय है संविधान संशोधन की वैधता से जुड़े मामलों को उच्चतम न्यायालय के न्यूनतम 11 सदस्यीय न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुना जाना चाहिए।"



यह सही है कि न्यायाधीशों की नियुक्तियों के लिये आयोग गठित करने संबंधी कानून और संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओ पर पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनवाई की थी।



इस संविधान पीठ ने न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाने के इरादे से सरकार को इससे संबंधित प्रक्रिया के लिए ज्ञापन तैयार करने का निर्देश दिया था जिसे वर्तमान प्रक्रिया में पूरक का काम करना था। यही नहीं, न्यायालय ने सरकार को प्रधान न्यायाधीश की सलाह से ही न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित मौजूदा प्रक्रिया के ज्ञापन को अंतिम रूप देने का भी निर्देश दिया था।



इसमें न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में कोलेजियम के मार्ग-निर्देशन के लिये पात्रता का आधार और न्यूनतम आयु का निर्धारण, नियुक्ति की प्रक्रिया में पारदर्शिता के बारे में सुझाव, सचिवालय की व्यवस्था और शिकायतों के निदान की व्यवस्था करना आदि शामिल थे। लेकिन सरकार द्वारा भेजे गये प्रक्रिया ज्ञापन को अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है।



यह प्रक्रिया ज्ञापन प्रधान न्यायाधीश के पास अगस्त से लंबित है। एक अवसर पर निर्वतमान प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर ने गत वर्ष सितंबर में दावा किया था कि सरकार के साथ इस मामले में सारे मतभेद दो सप्ताह के भीतर सुलझा लिये जायेंगे।



समिति इस बात पर व्यथित थी, "प्रक्रिया ज्ञापन को अंतिम रूप दिये जाने के संबंध में कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच गतिरोध बना हुआ है और इसके परिणामस्वरूप संवैधानिक न्यायालयों में रिक्त पदों को भरने में देरी हो रही है और न्याय प्रशासन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।"



यही नहीं, रिपोर्ट में कहा गया है, "समिति आशा करती है कि दोनों पक्ष व्यापक लोकहित के मद्देनजर जल्द ही अपने गतिरोध को दूर कर लेंगे तथा न्याय प्रशासन को इससे प्रभावित नहीं होने देंगे।"



चूंकि संसदीय समिति की यह सिफारिश राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग से संबंधित 99वें संविधान संशोधन को असंवैधानिक घोषित करने के उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले के संदर्भ में की है, इसलिए न्यायाधीशों की नियुक्ति के प्रकरण से जुड़े अब तक के अन्य मसलों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।



विदित हो कि न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित मुद्दे का सवाल है तो सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत सरकार मामले में न्यायमूर्ति एस आर पांडियन की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय के सात न्यायाधीशों की पीठ ने अकटूबर 1993 में ही अपना फैसला सुनाया था।



इस पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति ए एम अहमदी, न्यायमूर्ति जे एस वर्मा, न्यायमूति एम एम पुंछी, न्यायमूर्ति योगेश्वर दयाल, न्यायमूर्ति जी एन रे और न्यायमूर्ति डा ए एस आनंद शामिल थे। इस प्रकरण में आई व्यवस्था को न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में उच्चतम न्यायालय के द्वितीय निर्णय के रूप में जाना जाता है।



इस निर्णय के परिप्रेक्ष्य में तत्कालीन राष्टपति के माध्यम से सरकार ने इससे जुडे कुछ सवालों पर संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत 23 जुलाई 1998 को उच्चतम न्यायालय से राय मांगी थी।



न्यायमूर्ति एस पी भरूचा की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने 28 अक्तूबर, 1998 को इन सवालों पर अपनी राय दी थी। इस संविधान पीठ ने न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया के संबंध में नौ बिन्दुओं को प्रतिपादित किया था।



राष्ट्पति द्वारा उच्चतम न्यायालय के पास राय के लिये भेजे गये सवालों पर विचार करके राय देने के लिये गठित इस नौ सदस्यीय संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एम मुखर्जी, न्यायमूर्ति एस मजमूदार, न्यायमूर्ति सुजाता वी मनोहर, न्यायमूर्ति जी नानावती, न्यायमूर्ति एस एस अहमद, न्यायमूर्ति के वेंकटस्वामी, न्यायमूर्ति बी एन किरपाल और न्यायमूर्ति जी पटनायक शामिल थे।



इन फैसलों के परिप्रेक्ष्य में संविधान संशोधन और संविधान निर्वचन की वैधता से संबंधित मामलों की सुनवाई करने वाली संविधान पीठ के सदस्य न्यायाधीशों की संख्या के बारे में संसदीय समिति की इस रिपोर्ट में की गयी यह सिफारिश महत्वपूर्ण है।



अब देखना यह है कि संविधान संशोधन और संविधान निर्वचन की वैधता से संबंधित मामले की सुनवाई 11 न्यायाधीशों की पीठ और सात सदस्यीय न्यायाधीशों की पीठ द्वारा करने संबंधी सिफारिश के साथ संसद में पेश संसदीय समिति की रिपोर्ट पर सरकार क्या दृष्टिकोण अपनाती है।





अनूप कुमार भटनागर

-लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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