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नये भारत की दस्तक को पहचाने

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Place: Bhopal                                                👤By: DD                                                                Views: 18424

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणामों ने देश को अचम्भित कर दिया। उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखण्ड में भाजपा की शानदार जीत ने स्वतंत्रता के बाद नया इतिहास बनाया है। इस यादगार महाजीत के एक दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा मुख्यालय में "नया भारत" उभरने की बात कही है और उसे वे विकास का पक्षधर मानते हैं। उन्होंने जनता से कहा कि वह नए भारत के निर्माण का संकल्प लें। वर्ष 2022 में जब हम आजादी के 75 वर्ष पूरे करेंगे तब तक हमें ऐसा भारत बना लेना है।



प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह भाषण भी अविस्मरणीय रहेगा। पहली बार मध्यम वर्ग की चिन्ता किसी राष्ट्रनायक ने की है। गरीबी को खत्म करके मध्यम वर्ग पर लगातार लादे जा रहे बोझ को कम करने का उनका फार्मूला भी व्यावहारिक है। उनके दूरगामी राजनीतिक दृष्टिकोण को मैं नये भारत की नींव के रूप में देखता हूं। नया भारत पैंसठ प्रतिशत युवाओं के सपनों का भारत है, यह नया इंडिया अभूतपूर्व रूप से जागरुक महिलाओं के सपनों का नया भारत है। यह एक ऐसा नया भारत है जो कुछ पाने की बजाए कुछ करने और अवसर का उपयोग करने की इच्छा रखता है। सुकरात से काफ्का तक और शंकराचार्य से बटैंड रसेल तक विश्व के श्रेष्ठ विचारकों ने मानवता को जीवन संदेश दिया है। आज करुणा भरा हृदय, वही संदेश लेकर विकसित भारत के सपने को साकार करने में जुटा है।



आज हर भारतीय के मन में एक विकसित भारत का सपना तैर रहा है। हमारे प्रधानमंत्रीजी अपने करिश्माई व्यक्तित्व एवं परिश्रम की ज्योत से भारत के सपनों को आकार दे रहे हैं। अनिश्चितताओं और संभावनाओं की लम्बी कशमकश के बीच एक उजाला हुआ है। नई दिशा में कदम बढ़ाने से पहले कई सवाल खड़े होना स्वाभाविक है। मोटिवेशनल स्पीकर टाॅनी राॅबिन्स कहते हैं, यही क्षण होते हैं जब कोई संभावनाओं के नए क्षितिज ढूंढ लेता है। और कोई अपनी ही आशंकाओं में कैद होकर रह जाता है। कुछ तय और स्थिर न होना ही भौतिक व आत्मिक विस्तार की नई राहें खोलता है। यही अनिश्चितताओं की खूबसूरती है।' इन्हीं अनिश्चितताओं के बीच पहली बार हमारे सपनों को आकार देने की राहें खुली है। अक्सर हमारी आंखें हमेशा तरल सतह पर टिके सपने देखती हैं क्षितिज के दूरस्थ कोण के पार अनजाने भविष्य के सपने। हमने भी देखे थे, ढेर सारे सपने कुछ व्यावहारिक, कुछ अव्यावहारिक, कुछ जमीनी, कुछ आसमानी। क्षितिज के पास आकर ही जाना कि उन सपनों का सत्य क्या था, और महत्व क्या? भले ही ज्यादातर सपने सतरंगी बुलबुले थे, मगर कुछ ऐसे भी थे, जो जिंदगी की नींव में आज भी जिंदा हैं। उन आधे-अधूरे सपनों को पूरा होते हुए, आकार लेते हुए देखने का वक्त सचमुच शुभ भविष्य का सूचक है।



सपने हमने बहुत देखें, अब उन सपनों को सच में ढालने का वक्त है। ऐसा करके ही हम नया भारत बना पाएंगे, कुछ नया कर पाएंगे, मास्टरपीस बना सकेंगे। इन्हीं शुभता एवं श्रेष्ठता को ढालने की स्थितियों में ही आने वाले कल के सवालों के गूढ़ उत्तर छिपे हैं। हमारा वर्तमान सर्वोच्च नेतृत्व अक्सर एक कदम आगे की सोचता है, नया करने की सोचता है। इसी नए के प्रति उनके आग्रह में छिपा होता है विकास का रहस्य। कल्पनाओं की छलांग या दिवास्वप्न के बिना हम संभावनाओं के बंद बैग को कैसे खंगाल सकते हैं? सपने देखना एक खुशगवार तरीके से भविष्य की दिशा तय करना ही तो है। किसी भी भारतीय मन के सपनों की विविधता या विस्तार उसके महान या सफल होने का दिशा-सूचक है। यह सच है कि हर दिन के साथ जीवन का एक नया लिफाफा खुलता है, नए अस्तित्व के साथ, नए अर्थ शुरूआत के साथ। भारतीय जनता को सदैव ही किसी न किसी स्रोत से संदेश मिलता रहा है। कभी हिमालय की चोटियों से, कभी गंगा के तटों से और कभी सागर की लहरों से। कभी ताज, कुतुब और अजन्ता से, तो कभी राम, कृष्ण, बुद्ध और महावीर से। कभी गुरुनानक, कबीर, रहीम और गांधी से और कभी कुरान, गीता, रामायण, भगवत् और गुरुग्रंथों से। यहां तक कि हमारे पर्व होली, दीपावली भी संदेश देते रहते हैं। इन संदेशों से भारतीय जन-मानस की राष्ट्रीयता सम्भलती रही, सजती रही और कसौटी पर आती रही तथा बचती रही। लेकिन पहली बार राजनीति सन्देश देने की मुद्रा में आयी है। इसलिये यही वह क्षण है, जिसकी हमें प्रतीक्षा थी और यही वह सोच है जिसका आह्वान है अभी और इसी क्षण शेष रहे कामों को पूर्णता देने का, नये कामों को शुरु करने का, क्योंकि हम नया भारत बना पाएंगे।



मोदी जैसे कुछ लोग ही 'विजनरी' होते हैं, वे जानते हैं 'भारतीय मन के स्वप्नों' का महत्व, 'तरुणाई की सबलता'। अर्नाल्ड टायनबी ने अपनी पुस्तक 'सरवाइविंग द फ्यूचर' में नवजवानों को सलाह देते हुए लिखा है 'मरते दम तक जवानी के जोश को कायम रखना।' मोदी आज जिस तरह से युवापीढ़ी मुखातिब हैं, उनको लेकर आशान्वित है, संभवतः यही वह नींव है, जिस पर नया भारत निर्मित हो सकता है। युवावस्था में हम जो मूल्य बनाते हैं, जिन चीजों का विरोध करते हैं, यौवन के परिपक्व होते ही उन चीजों को भावुकता या जवानी का जोश कहकर भूलने लगते हैं। वही नीति विरोधी काम करने लगते हैं जिनके कभी हम खिलाफ थे। इस एकमात्र विषमता का अगर युवा पीढ़ी निवारण कर सके तो भविष्य उनके हाथों संवर सकता है। इसी तरह सुकरात नवयुवकों से बातें करते थे। उनके लिए गोष्ठी आयोजित करते थे। वे जानते थे कि नवयुवकों का दिमाग उपजाऊ जमीन की तरह होता है। उन्नत विचारों का जो बीज बो दें तो वही उग आता है। एथेंस के शासकों को सुकरात का इसलिए भय था कि वह नवयुवकों के दिमाग में अच्छे विचारों के बीज बोनेे की क्षमता रखता था। आज मोदी की सोच सुकरात के दृष्टिकोण का ही नवीन संस्करण है। इस पीढ़ी में उर्वर दिमागों की कमी नहीं है मगर उनके दिलो दिमाग में विचारों के बीज पल्लवित कराने वालेे 'सुकरात' जैसे लोग दिनोंदिन घटते जा रहे हैं। आजादी के बाद ऐसे कितने लोकनायक हुए हैं, जो नई प्रतिभाओं को उभारने के लिए ईमानदारी से प्रयास करते हैं? अक्सर राजनीति स्वार्थ के नाम पर उन्हें कभी मंडल तो कभी कमण्डल थमाते रहे हैं। नया भारत निर्मित करने का संकल्प तो पहली बार उनकी झोली में डाला गया है। निश्चित ही सकारात्मक परिणाम आयेंगे। हेनरी मिलर ने एक बार कहा था- "मैं जमीन से उगने वाले हर तिनके को नमन करता हूं। इसी प्रकार मुझे हर नवयुवक में वट वृक्ष बनने की क्षमता नजर आती है।"



महादेवी वर्मा के शब्दों में "बलवान राष्ट्र वही होता है जिसकी तरुणाई सबल होती है।" जिसमें मृत्यु का वरण करने की क्षमता होती है, जिसमें भविष्य के सपने होते हैं और कुछ कर गुजरने का जज्बा होता है, वही तरुणाई है। हमें गंभीरता से विचार करना चाहिए कि आखिर ऐसी कौन-सी परिस्थितियां रही हैं, जो इस पीढ़ी को उनके उद्देश्य से विमुख करती रही हैं, उन्हें असयंमित और अनुशासनहीन बनाती रही है। वोट की राजनीति चलाने की बजाय विकास की राजनीतिक मानसिकता समाज में बढ़ रही है और इसने समाज में नये मिथक गढ़े हैं। अब कुतर्कों के सहारे लोग राजनीति नहीं कर सकेंगे, जिन्होंने कोेशिश की, उन्होंने हाल के चुनावों में करारी हार झेली है। राजनीति का व्यापार करना छोड़ दीजिए, विकास अपने आप जगह बना लेगा और इस तरह का पहली बार राजनीति सन्देश देने की मुद्रा में आयी है।



क्या हमारे आज के नौजवान भारत को एक सक्षम देश बनाने एवं नया भारत बनाने का स्वप्न देखते हैं? दरअसल हमारी युवापीढ़ी महज स्वप्नजीवी पीढ़ी नहीं है, वह रोज यथार्थ से जूझती है, उसके सामने भ्रष्टाचार, आरक्षण का बिगड़ता स्वरूप, महंगी होती जाती शिक्षा जैसी तमाम विषमताओं और अवरोधों की ढेरों समस्याएं भी हैं। उनके पास कोरे स्वप्न ही नहीं, बल्कि आंखों में किरकिराता सच भी है। इस गला काट प्रतियोगिता के युग में, हमारी युवापीढ़ी ही वर्तमान की विदू्रपताओं को चुनौती देकर नया भारत गढ़ने का संकल्प-स्वप्न साकार कर सकती है। संसार की सबसे बड़ी आबादी हमारे यहां युवाओं की है। पचपन करोड़ के आसपास है। भारत के अलावा इस वक्त किसी अन्य देश के पास इतनी ऊर्जावान उत्पादक शक्ति नहीं है। इसका यथार्थ अलग-अलग है। इसके सपने अलग हैं। इसके कर्म विविध हैं। और इसके संकट विविध हैं। एक बात सबमें काॅमन है- उनमें हिम्मत है। निराशा नहीं है। ग्लोबल कामनाएं हैं, भारतीयता के संस्कार हैं, विकास की तमन्ना है। उन्हें पाने की जिद है। जबर्दस्ती है। उनके लिए कुछ भी कर गुजरने का माद्दा है। वह भविष्यवादी हैं और उनके लिये वर्तमान संकल्प है नया दायित्व ओढ़ निर्माण की चुनौतियों को झेलने की तैयारी का और भविष्य एक सफल प्रयत्न है सुबह की अगवानी में दरवाजा खोल संभावनाओं की पदचाप पहचानने का। यही समय जागने का है। बहुत सो लिये। अब जागकर नहीं उठे तो नया भारत निर्मित करने का स्वर्णिम अवसर दरवाजे पर दस्तक देकर लौट जाएगा।





- ललित गर्ग

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