इस वर्ष महिला दिवस का विषय "कार्यस्थल की दुनिया में समानता- वर्ष 2030 तक दुनिया में महिला-पुरुष अनुपात 50-50 करने का लक्ष्य" पर केन्द्रित है।
यद्यपि कार्यस्थल की दुनिया एवं माहौल महिलाओं के लिए तेज़ी से बदल रहा है, इसके बावजूद, महिलाओं के लिए 'कार्यस्थल पर समानता' हासिल करने के लक्ष्य को पाने के लिए अभी हमे लंबी दूरी तय करनी है। हमें महिलाओं के वेतन, अवकाश, विशेषरूप से भुगतान सहित मातृत्व एवं शिशु देखभाल अवकाश, परिवार एवं बुज़ुर्गों की देखभाल के लिए विशेष अवकाश, गर्भावस्था के दौरान संरक्षण, स्तनपान कराने वाली महिलाओं की स्थिति के प्रति संवेदनशीलता और कार्यस्थल पर होने वाले यौन शोषण के क्षेत्र में महिलाओं के लिए पूर्ण समानता की ओर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है।
हमें अपने घरों की लड़कियों को पारंपरिक शिक्षक, बैंकर आदि नौकरियों के अलावा रोज़गार की व्यापक श्रेणियों (जैसे सेना, खेल आदि) में आगे बढ़ने और रोज़गार हासिल करने के लिए भी प्रेरित करने की ज़रूरत है। हमें अपनी बेटियों को यह सिखाने की आवश्यकता है कि वे बड़े सपने देखें और बड़ा कार्य करने की दिशा में सकारात्मक दृष्टि से कार्य करें।
महिलाओं के करियर में एक अन्य बाधा आत्मविश्वास में कमी और पूर्वाग्रह से ग्रसित होना है, जिसकी वजह से वह ख़ुद अपने आप से ही हार रही हैं। शादी, गर्भावस्था, शिशु जन्म, स्तनपान एवं शिशु देखभाल आदि को महिलाओं के करियर में बाधा या किसी रोक के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
अपने जीवन में विभिन्न भूमिकाएं निभाने की वजह से आजकल महिलाएं कार्यस्थल, घर एवं समाज में विभिन्न चुनौतियां का सामना कर रही हैं। हम महिलाओं से अपेक्षा रखते हैं कि वे मेहनत एवं ईमानदारी से नौकरी करने के अलावा गृहिणी, बेटी, बहु, पत्नी एवं समाज में निर्धारित कई अन्य भूमिकाओं को शानदार तरीके से निभाए। परिणामस्वरूप, परिवार एवं आसपास के लोगों की अपेक्षाओं को पूरी न कर पाने की वजह से ज़्यादातर महिलाएं अपराधबोध से ग्रसित हैं। इसकी वजह से महिलाओं में चिंता, अवसाद, खाने का विकार आदि समस्याएं बढ़ रही हैं। कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए सुरक्षित एवं बेहतर माहौल के अलावा, महिलाओं के प्रति समाज के दृष्टिकोण एवं व्यवहार में भी व्यापक स्तर पर बदलाव लाने की आवश्यकता है। घर एवं कार्यस्थल, दोनों ही जगहों पर काबिले-तारीफ भूमिका निभाने के लिए, महिलाओं के ऊपर उनकी सीमा से अधिक कार्य करने के लिए दबाव नहीं बनाया जाना चाहिए।
हमें कार्यस्थल पर महिलाओं की सफलता को सकारात्मक नज़रिए के साथ स्वीकृति देने की आवश्यकता है। यदि कोई महिला सफल होती है तो उसे घर एवं कार्यस्थल दोनों ही जगहों पर विरोध एवं शत्रुता का सामना करना पड़ता है, जबकि वास्तविक तथ्य यह है कि यदि किसी परिवार की महिला भी कार्य करती है तो उस परिवार के जीवन की गुणवत्ता में सकारात्मक रूप से काफी अधिक सुधार हो जाता है। महिलाओं को अपने पेशेवर कार्य के लिए दोषी महसूस नहीं कराया जाना चाहिए, क्योंकि दोनों अभिभावकों का घर से बाहर कार्य करना, बच्चों के लिए खासतौर पर लड़कियों के समग्र विकास के लिए काफी अच्छा होता है। "वह करियर को लेकर अत्यधिक केन्द्रित एवं सकारात्मक है", इस वाक्य को आज भी समाज में नकारात्मक तारीफ के रूप में देखा जाता है।
हमें युवाओं के बीच ऐसे मूल्यों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है कि वे बढ़े होने के क्रम में ही महिलाओं के साथ कार्य करने और कार्यस्थल पर उनके बेहतर सहयोगी बनने में गर्व महसूस करें। महिलाओं के कार्य करने को नकारात्मक नज़रिए से देखने के बजाय, उनकी प्रतिभा और कार्य की सराहना करें। हमें ऐसे परिवारों की आवश्यकता है, जहां स्वस्थ कार्य वातावरण उपलब्ध कराने के लिए पुरुष भी घरेलू ज़िम्मेदारियों को महिलाओं के साथ मिलकर साझा करें। जिन परिवारों में लिंग के आधार पर भेदभाव कम है (जैसेः मां कार्यस्थल पर नौकरी के लिए जाती हैं और पिता घरेलू ज़िम्मेदारियां संभालते हैं), ऐसे परिवारों के बच्चे अधिक आत्मबल से परिपूर्ण होते हैं। जैसे कि एक बार प्रधानमंत्री ने अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा था कि हमें अपने लड़कों के व्यवहार में व्यापक स्तर पर बदलाव लाने के ज़रूरत है ताकि वे महिलाओं का सम्मान करना सीख सकें। युवा पीढ़ी के पुरुषों को अपने जीवनसाथी के करियर में अहम योगदान देना चाहिए। हमें अपने लड़कों को जीवन में अपने व्यक्तित्व को सौम्य एव सह्रदय बनाने की शिक्षा देनी चाहिए। उन्हें खाना बनाना, कपड़े धोना, बच्चों और बुज़ुर्गों की सेवा करना और उनकी ज़रूरतों को पूरा करना आदि कार्य सिखाने चाहिए ताकि वे भी ज़रूरत पड़ने पर महिलाओं के समान इन पारिवारिक ज़िम्मेदारियों को अपना कर्तव्य समझकर निभा सकें। हमें अपने लड़कों को संतुलित परिवार एवं करियर के मूल्यों को सिखाना चाहिए। हमें उनको यह समझाने की ज़रूरत है कि शरीर की संपूर्ण रचना और शारीरिक दृष्टि से महिलाओं के भी समान सपने और महत्वाकांक्षाएं हैं। लड़कियों को कठोर एवं मज़बूत होने की प्रेरणा देने के अलावा, हमें लड़कों के प्रति अपने रवैये को बदलने की भी आवश्यकता है।
पिछले कुछ समय के दौरान, उच्च श्रेणी की नौकरियों एवं वित्तीय सशक्तता में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में व्यापक सुधार दर्ज किया गया है, इसके बावजूद, हमें पेशवर महिलाओं के प्रति अपने अचेतन पूर्वाग्रहों को बदलने की ज़रूरत है। महिलाओं में व्यावहारिक परिवर्तन लाने की भी ज़रूरत है। महिलाओं को ख़ुद के भीतर मौजूद अपार संभावनाओं को लेकर आश्वस्त एवं गौरवान्वित होना चाहिए। महिलाओं के लिए समानता का मतलब केवल समान वेतन नहीं, बल्कि समान अवसर, करियर चुनने की समान स्वतंत्रता और विभिन भूमिकाओं को अदा करना होना चाहिए।
महिला दिवस पर, पूर्वाग्रह एवं असमानताओं को चुनौती और महिलाओं की उपलब्धियों की यात्रा के जश्न द्वारा ?बदलाव के लिए सशक्त बनने? की दिशा में महिलाओं को समाधान निकालना चाहिए। आओ, सभी बाधाओं पर काबू पाने के बाद, हम करियर के क्षेत्र में महिलाओं की जीत को सुदृढ़ बनाएं एवं उसका समर्थन करें। महिलाओं के लिए नई रोज़गार के अवसरों का सृजन करें, बदलाव के लिए अत्यंत सशक्त एवं खुले विचारों वाले बनें।
-डॉ. साशा रेखी
लेखक नई दिल्ली स्थित सफदरजंग अस्पताल में मनोचिकित्सक हैं। इस लेख में प्रकाशित विचार, लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।
महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर समानता
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