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मप्र में देशी किस्मों के फलों का हो रहा है संरक्षण

Place: Bhopal                                                👤By: DD                                                                Views: 1348

27 अक्टूबर 2020। मध्यप्रदेश में देशी यानि प्राकृतिक पौधें के फलों का संरक्षण किया जा रहा है जिससे इनका अस्तित्व बचा रहे और भावी पीढ़ी को यह उपलब्ध कराया जा सके।
मप्र सरकार में इनके संरक्षण का काम जैव विविधता बोर्ड कर रहा है। बोर्ड ऐसी देशी पौधें की पहचान कर रहा है और फिर फण्डिंग कर इनके संरक्षण का काम अन्य संस्थाओं को सौंप रहा है। यह इसलिये किया जा रहा है क्योंकि वर्तमान में हाईब्रिड फलों का उत्पादन एवं व्यापार हो रहा है। हाईब्रिड से वे देशी पौधें विलुप्त हो रही हैं जिनसे ये हाईब्रिड तैयार किये गये हैं। बोर्ड की असिस्टेंट मेम्बर सेके्रटरी एलिजाबेथ थामस ने बताया कि मप्र के विन्ध्य क्षेत्र में सुंदरजा आम, अलीराजपुर के कट्ठीवाड़ा -नूरजहां आम एवं बड़वानी का पपीता ऐसी ही देशी पौधें हैं। ये विलुप्त हो रहे हैं। विन्ध्य क्षेत्र के देशी आमों के संरक्षण के लिये रीवा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र को काम सौंपा गया है तथा इस केंद्र ने इनके पौधों का संरक्षण कर इनकी पैदावार बढ़ाने का कार्य शुरु किया हुआ है तथा इस केंद्र से किसानों को भी पौधे दिये जा रहे हैं। ये सभी देशी पौधें अण्डर यूटिलिटी फू्रट कहलाते हैं। बोर्ड ने उक्त के अलावा, सीताफल, जामुन, बेर, करोंदा, चिरोंजी अचार, इमली, केले एवं कटहल की देशी पौधों के संरक्षण का भी काम प्रारंभ किया हुआ है।
थामस ने यह भी बताया कि भारत सरकार भी देशी किस्मों के बीजों का वैज्ञानिक तरीके से संरक्षण कर रही है। इसके लिये नई दिल्ली में नेशलन ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज बना हुआ है जिसमें मप्र सहित देश के अन्य राज्यों में विलुप्त हो रही देशी किस्मों के बीज रासायनिक क्रिया से संरक्षित किये जा रहे हैं जिससे भविष्य में इनका उपयोग किया जा सके। क्योंकि एक बार देशी किस्म खत्म होने पर इन्हें दोबारा नहीं बनाया जा सकेगा।
लघु वनोपज संघ दे रहा है समर्थन मूल्य :
मप्र के वन क्षेंत्रों में पाये जाने वाले बेल, हर्रा, बहेड़ा, आंवला, चिरोंजी, महुआ की गुल्ली और इमली की खरीदी मिनिमत सपोर्ट प्राईज पर करने के लिये राज्य सरकार के लघु वनोपज संघ ने की हुई है। इनका दोहन एवं विक्रय स्थानीय स्तर पर ही होता है बहुधा ग्रामीण एवं आदिवासी इसका विक्रय करते हैं। उन्हें इसके अच्छे दाम मिलें, इसलिये संघ ने मिनिमम सपोर्ट प्राईज पर इनकी खरीदी की व्यवस्था कर रखी है। संघ के प्रबंध संचालक एमएस राजपूत ने बताया कि ये सभी फलों के अंतर्गत ही आते हैं, हालांकि इनका बाहर निर्यात नहीं होता है।
मंडियों में भी बिकने आते हैं फल :
मप्र में किसानों द्वारा उत्पादित फल कृषि उपज मंडियों में भी बिकने आते हैं। इस साल अप्रैल से अगस्त तक कुल 13 लाख 54 हजार टन फल इन मंडियों में बिकने आये हैं। मप्र से फलों के विदेश में निर्यात के लिये भारत सरकार ने भी लायसेंस देने की व्यवस्था की हुई है और भोपाल एवं इंदौर में वाणिज्य एवं उद्योंग मंत्रालय के अंतर्गत डीजी फारेन ट्रेड के नाम से कार्यालय खोले हुये हैं। कोरोना महामारी के कारण पिछले सात माहों में मप्र से फलों का निर्यात न के बराबर रहा है।



- डॉ. नवीन जोशी/PNI

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