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प्रदेश के वन अपराधों में सजा का प्रावधान खत्म होगा, सिर्फ जुर्माना लगाया जायेगा

Place: Bhopal                                                👤By: DD                                                                Views: 1122


- डॉ. नवीन जोशी

भोपाल 3 अगस्त 2022। प्रदेश में वन अपराधों पर कारावास की सजा का प्रावधान खत्म होगा तथा इसके स्थान पर सिर्फ जुर्माने का प्रोविजन किया जायेगा। इसके लिये वन विभाग ने तैयारी प्रारंभ कर दी हैं। ये वे अपराध होंगे जो वनों के बाहर घटित होते हैं।
इसके लिये वन विभाग ने अपने तीन अधिनियमों एवं एक नियम का चयन किया है जो उसने स्वयं बनाये हुये हैं। इनमें मप्र अभिवहन (वनोपज) नियम 2000 में बिना टीपी के लकडिय़ां ले जाने पर एक वर्ष की सजा एवं दस हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान है जबकि मप्र काष्ठ चिरान (विनियमन) अधिनियम 1984 में आरा मशीनों द्वारा अवैध लकडिय़ों का चिरान करने एवं हिसाब-किताब नहीं रखने पर एक वर्ष के कारावास एवं बीस हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान है। इसी प्रकार, मप्र तेंदू पत्ता (व्यापार विनियमन) अधिनियम 1964 में बिना अनुमति के तेन्दूपत्ते का संग्रहण करने एवं उसका विक्रय करने पर तीन माह से एक वर्ष तक के कारावास एवं 50 हजार रुपये के अर्थदण्ड का प्रावधान है। मप्र वन उपज (व्यापार विनियमन) अधिनियम 1969 में वनोपजों के अवैध व्यापार पर दो साल के कारावास एवं 25 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान है।
उक्त प्रावधानों से अब कारावास की सजा हटाये जाने और सिर्फ जुर्माना लगाये जाने की कवायद चल रही है। वन विभाग के निर्देश पर वन मुख्यालय ने इसका ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। विधि विभाग के परमर्श के बाद इसे अंतिम रुप दे दिया जायेगा तथा केबिनेट से स्वीकृति लेकर इनमें बदलाव कर दिये जायेंगे।
इसलिये किया जा रहा है यह :
कारावास की सजा का प्रावधान इसलिये हटाया जा रहा है क्योंकि इसमें आरोपी द्वारा प्रक्रियागत गलती की जाती है। वनों के बाहर अपनी निजी भूमि पर वृक्षारोपण करने वाले किसान भी ऐसी प्रक्रियागत गलती कर जाते हैं तथा बिना टीपी लिये वृक्षों का विक्रय कर देते हैं। इसलिये उनका प्रकरण जुर्माना लगाकर खत्म किया जा सकेगा। राज्य सरकार ने विधि आयोग की सिफारिशों पर आईपीसी एवं सीआरपीसी में बदलाव कर कई धाराओं को समझौता योग्य बनाया हुआ है।

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