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कोर्ट ऑर्डर के बाद भी 3 उजबेकिस्तानी बहनों को पुलिस नहीं दे रही लीव इंडिया नोटिस

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Place: भोपाल                                                👤By: prativad                                                                Views: 2114

कोर्ट के ऑर्डर के बाद भी नहीं छूट रही है उजबेकिस्तान की तीन लड़कियां

9 जून 2023। मानव तस्करी की शिकार हुई उजबेकिस्तान की बहनें कोर्ट से निर्दोष साबित होने के बाद भी दस महीनों से बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ करेक्शनल एडमिनिस्ट्रेशन में रहने को मजबूर हैँ। जबकि कोर्ट ने 08 अगस्त 2022 के फैसले के तहत तीनों उज़्बेकिस्तानी नागरिकों के निर्वासन का आदेश दिया है।

अपनी बहनों की रिहाई के लिए डेढ़ साल से आयी बड़ी बहन बताती है कि बहनों की रिहाई के संबंध में उजबेकिस्तान की एम्बेसी छह मार्च 2023 को ही यह बता दिया है कि तीनों लड़कियां उनके देश की नागरिक हैं। उनको कोर्ट की ऑर्डर से वतन वापस भेजा जाए। वह कोर्ट का आर्डर लेकर वैशाली एसपी के पास जाती हैं तो अररिया एसपी के पास भेजा जाता है और अररिया एसपी के पास जाती हैं तो हाजीपुर भेज दिया जाता है। बड़ी बहन का कहना है कि जब तक बिहार पुलिस लीव इंडिया का नोटिस नहीं निकालती है वह अपने देश नहीं जा सकती है।

तीनों लड़कियों के माता-पिता से बात करने भी नहीं दी जा रही थी। परेशान बडी बहन बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ करेक्शनल एडमिनिस्ट्रेशन यानी बीका पहुंची। बड़ी बहन का कहना है कि वह कई बार मिलने की कोशिश कर चुकी हैं। लेकिन मिलने नहीं दिया जा रहा है। बहुत कोशिशों के बाद 06 जून को बहन से मिलने बीका पहुंची। उनका आरोप है कि बीका में उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया। वहां पहुंची तो बहनों की स्थिति देखकर वह रोने लगी।

पत्रकार सविता कुमारी से बातचीत के दौरान बड़ी बहन ने बताया कि बीका में उनकी बहनों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है। इसके कारण मंझली बहन ने आत्महत्या करने की भी कोशिश की है।

उनकी बहनों ने मुलाकात के दौरान बताया कि डिटेंशन सेंटर में ठीक से खाना तक नहीं दिया जाता है। कपड़े भी साफ नहीं मिलते हैं। उन्हें एक छोटे से कमरे में बंद रखा जाता है। बहनों के साथ अमानवीय व्यवहार को लेकर बड़ी बहन ने डीजीपी बिहार को शिकायत की है। बड़ी बहन ने बहनों के साथ डिटेंशन सेंटर कोई अप्रिय घटना घटित होने की आशंका जाहिर की है।

बंदी अधिकार आंदोलन के संयोजक संतोष उपाध्याय बताते हैं कि डिटेंशन सेंटर में रहे विदेशी नागरिकों को सारे अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं लेकिन भारत के संविधान में व्यक्तियों को प्राप्त मौलिक अधिकार उसे भी प्राप्त है। इसलिए डिटेंशन सेंटर में बंद व्यक्तियों को तमाम मानवाधिकार की सुविधाएं मिलनी चाहिए।

एमिग्रेशन के नियम के तहत किसी भी विदेशी नागरिक के पास एक पासपोर्ट, एग्जिट परमिट और कोर्ट से केस खत्म होने का ऑर्डर है तो उसे 40 से 60 दिनों के अंदर वतन भेज देना है।

उजबेकिस्तान की एम्बेसी छह मार्च को ही लड़कियों को अपना नागरिक बता चुकी है।

बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ करेक्शनल एडमिनिस्ट्रेशन के निदेशक नीरज कुमार झा ने बताया कि उजबेकिस्तान की तीन लड़कियों की रिहाई का कोर्ट से आदेश मिल चुका है लेकिन रिहाई की रिपोर्ट प्रक्रियाधीन है।

- पटना से सविता कुमारी

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